SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 533
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी०।०५ २०७४०५ परमाणुउद्गलादीनां स्वरूपनिरूपणम ५१५ चिरं होइ' हे भदन्त ! एकगुणकालकः खलु पुद्गलः कालतः कियच्चिरं कियकालपर्यन्तं भाति -तिष्ठति ? भगवानाह -' गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयम् उक्कोसेणं असंखेज्नं कालं ' हे गौतम ! एकगुणकालकः पुद्गलः जघन्येन एक समयम् , उत्कर्षेण असंख्येयं कालं तिष्ठति, ' एवं जाव-अणंतगुणकालए ' एवं तथैव यावत्-अनन्तगुणकालकः पुद्गलः जघन्येन एकं समयम् , उत्कर्षेण असंयह पूछते हैं कि जिम पुद्गल परमाणु में कृष्ण वर्ण का एक गुग-एक अंश है । वह कितने समगतक कृष्णवर्ण का एक अंश वाला बना रहता है। ( एगगुणकालए ण भंते ! पोगले कालओ केवच्चिरं होइ ) इस पाठ द्वारा यही गौतम का प्रश्न प्रकट किया गया है-इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि-(गोयमा ) हे गौतम ! ( जहण्णेणं एर्ग समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं ) जिस पुद्गल परमाणु में कृष्णगुण का एक ही अंश है-अर्थात् कृष्णगुण का सब से जघन्य अंश है-ऐसा यह पुदल परमाणु यदि अपनी इसी स्थिति में रहेगा, तो कम से कम एक समयतक और अधिक से अधिक अमख्यात कालतक रहेगा, बाद में उसमें कृष्णगुण के और अंश बढ जावेंगे। ( एवं जाव अणंतगुण कालए ) इसी तरह से यह भी समझ लेना चाहिये कि जिम पुनल में कृष्ण गुण के अनंत अंश है-वह पुद्गल कम से कम एक समयतक और अधिक से अधिक अमख्यात कालतक अपनी इस स्थिति में रह के गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मे प्रश्न पूछे छे , “ एगगुणकालएण' भंते ! पोग्गले कालओ केवच्चिर होइ ?” 3 महन्त ! २ पुस ५२. માણુમાં કૃષ્ણવર્ણને એક ગુણ-એક અંશ-રહેલું હોય છે, તે પુદગલ પરમાણુ કેટલા સમય સુધી કૃષ્ણવર્ણના એક અંશથી જ યુક્ત રહે છે? તેને જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે – "गोयमा ! जहण्णेण एग समय, उक्कोसेण अस खेज्जकाल " गीतम ! જે મુદ્દલ પરમાણુમાં કૃષ્ણવર્ણને એક જ અંશ હોય છે, એટલે કે જે પુદુગલમાં કૃષ્ણતા ઓછામાં ઓછા પ્રમાણમાં હોય છે, તે પરમાણુ યુદૂગલ તેની એની એ સ્થિતિમાં ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળ સુધી રહે છે. ત્યારબાદ તેમાં કૃણતાનું પ્રમાણ વધી જશે. " एवं जाव अणतगुणकालए " २ पुसमा गुगुना मत मश २० હોય છે, તે પુદ્ગલ પણ ઓછામાં ઓછું એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળ સુધી એની એ સ્થિતિમાં રહી શકે છે. અહીં બાર श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy