________________
भगवतीसरे खेज्नं कालं' हे गौतम ! परमाणुपुद्गला जघन्येन एक समयम् , एकसमयपर्यन्तम् तिष्ठति, अथ च उत्कर्षण असख्येयं कालम् असंख्यकालपर्यन्तं तिष्ठति असंख्यातकालानन्तरं परमाणुपुद्गलानामेकरूपेण स्थित्यभावात् 'एवं जावअणंतपएसिओ' एवं तथैव यावत् अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः जघन्येन एकसमयम् , उत्कृष्टेन असंख्येयकालं तिष्ठति, यावत्करणात्-द्विपदेशिक-त्रिमदेशिक-चतु. पदेशिकादि-संख्यातपदेशिका-संख्यातमदेशिकान्तं संग्राह्यम् । उकोसेणं असंखेन्ज काल ) हे गौतम ! परमाणु पुद्गल यदि अपने निज स्वरूप-परमाणुरूप में रहे तो वह कम से कम एक समय तक रहता है-फिर इसके बाद वह अपनी परमाणुरुपता का परित्याग कर देता है और यदि अधिक से अधिक समय तक यह परमाणुरूपना में बना रहे तो असंख्यान काल तक बना रह सकता है इसके बाद उस की परमाणु रूपता में स्थिति नहीं रह सकती है-वह आवश्य ही स्कन्ध रूप पर्याय में परिणत हो जावेगा । ( एवं जाव अणंतपएसिभो ) इसी तरह से यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध के विषय में भी जानना चाहिये। अर्थात् द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी तक जितने भी पुदगल स्कन्ध हैं वे सब अपने २ स्वरूप में कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक असंख्यान काल तक रह सकते हैं । बाद में वे अन्यपर्यायरूप से आक्रान्त (परिणत ) हो जाते हैं। यहां यावत् पद से दिप्रदेशिक स्कन्ध विप्रदेशिक स्कन्ध चतुष्पदेशिक स्कन्ध आदि तथा संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध और असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध गृहीत हुए हैं। उकोसेणं असंखेज्ज काल" गौतम ! ५२मा पुस तेना सर २५३५मा ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળ સુધી રહે છે. ત્યારબાદ તે પરમાણુ રૂપે રહી શકતું નથી પણ તે અવશ્ય સ્કલ્પરૂપ पर्यायमा परिणभित / जय छे. “एव जाव अणंत पएसिओ" मनात प्रदेशी સ્કન્ધ પર્યન્તના સ્કર્ધ વિષે પણ એ જ પ્રમાણે સમજવું. એટલે કે ઢિપ્રદેશીથી લઈને અનંત પ્રદેશી પર્યન્તના કન્ધ પોતપોતાની અસલ પર્યાયમાં ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળ સુધી રહી શકે છે. ત્યારબાદ અન્ય પર્યાયમાં પરિમિત થઈ જાય છે. અહીં ' यावत् ' ( 44 ) ५४धी विदेशीथी ४५ प्रदेशी ५-तना २४-धी, तथा સંખ્યાત પ્રદેશી અને અસંખ્યાત પ્રદેશી ઔધે ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે,
श्री. भगवती सूत्र:४