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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी००५उ०७ ०४ परमाणुपुद्गलादीनां स्पर्शनानिरूपणम् ४९१ स्पृशति ५, 'णो देसेहि सव्वं फुसइ' नो देशैः सर्व स्पृशति ६, ' णो सव्वेणं देसं फुसइ 'नो सर्वेण देशं स्पृर्शात ७, 'णो सम्वेणं देसे फुसई' नी सर्वेण देशान् स्पृशति ८, अपितु 'सव्वेणं सव्वं फुसइ ' सर्वेण सर्व स्पृशति ९ सर्वेग-स्वस्थ सर्यात्मना सर्व-परस्य सर्वभागं स्पृशति । अत्र परमाणोनिर शत्वेन आद्यानामष्टाना मसंभवात् — सर्वेण सर्वम् ' इति नवमो विकल्पः स्वीकृतः ९ एवं परमाणुपोग्गले दूसरे पुद्गल परमाणु के एक देश का स्पर्श करके उसे छूता हो (णो देसेहि देसे फुसइ ) अपने अनेक देशों द्वारा उसके अनेक देशों का स्पर्श करके उसे छूता हो (णो देसे हिं सव्वं फुसइ) अपने अनेक देशों द्वारा उसका पूर्णरूपसे स्पर्श कर उसे छूता होणे सव्वेणं देसं फुसइणो सवेणं देसे फुसइ) तथा न अपने समस्त भाग द्वारा उसके एक देशका स्पर्श करता हो, अथवा अपने समस्त भाग द्वारा उसके अनेक देशों का स्पर्श करता हो किन्तु (सम्वेणं सव्वं फुसइ) वह तो अपने समस्त से उसके समस्त का ही स्पर्श करता है। तात्पर्य कहने का यह है कि यहां पर जो"एक पुद्गल परमाणु दूसरे पुद्गल परमाणु का स्पर्श किम पद्धति के अनुसार करता है" इस विषय में नौ विकल्प उठाकर विचार किया गया है। प्रथम विकल्प में शंकाकार ने ऐसा पूछा है कि जब एक परमाणु दूसरे परमाणु का स्पर्श करता है तो क्या वह उस समय अपने एक भाग से-एक अंश से-उसके एक भाग का-एक अंश का स्पर्श करता है ? या उसके अनेक भागों का स्पर्श करता है ? या अपने एक माजी १ तेना मे भागना २५ ४२तु नथी, ' णो देसेहि देसे फुसइ " ते पाताना मन लागोन। ५५५५ ४२० नथी, “णो देसे हिंसव फुसइ" તે પિતાના અનેક ભાગોથી તે સમસ્ત પરમાણુ પુલને પણ સ્પર્શ કરતું नथी, णो सव्वेण देसफुपइ" ते पोताना समस्त माथी तेना मे भागना २५ ४२ नथी, " णो सव्वेण देसे फुसइ” अथवा ते मासे माभु ५२. भारा तेना घg! मागोन। ५६ ५५श ४२तु नथी, “ सम्वेण सव्व फुसह" પણ તે આખે આખું પરમાણુ પુલ બીજા આખે આખા પરમાણુ પુલને પર્શ કરે છે. આ સમસ્ત કથનને ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે–એક પરમાણુ પુલ જયારે બીજા પરમાણુ પુલને સ્પર્શ કરે ત્યારે કઈ પદ્ધતિ અનુસાર તે સ્પર્શ થતું હોય છે, એ વાત જાણવાને માટે ગૌતમ સ્વામીએ નવ વૈકલ્પિક પ્રશ્નો મહાવીર પ્રભુને પૂછયા છે. અને મહાવીર પ્રભુએ તે નવ વિકપમાંના આઠ વિકલપને અસ્વીકાર છે. પણ નવમા વિકલ્પનો સ્વીકાર કર્યો છે. એટલે કે આ श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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