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भगवतीसूत्रे देशान, सर्व, इति शब्दत्रयस्य योजनया तयो विकल्पा भवन्ति ९, इति सर्वसंकलनया नव,भगवानाह-'गोयमा ! णोदेसेणं देसं फुसइ' हे गौतम ! परमाणुपुद्गलः परमाणुपुद्गलं स्पृशन् नो देशेन देशं स्पृशति १, 'णो देसेणं देसे फुसई' नो देशेन देशान् स्पृशति २, 'णो देसेणं सव्वं फुलइ ' नो देशेन सर्व स्पृशति३ णो देसेहि देसं फुमइ' नो देशैः देशं स्पृशति ४, ‘णो देसेहिं दे से फुसइ' नो देशैः देशान् तीन विकल्प बन जाते हैं । तथा 'देशैः' शब्द के साथ ( देशं, देशान्, सर्व ) इन तीन शब्दों की योजना से दूसरे तीन विकल्प और बन जाते हैं । तथा-'सर्वेण ' के साथ ( देश, देशान्, सर्व ) इन तीन शब्दों की योजना कर देने से तीसरे तीन विकल्प बन जाते हैं। इस तरह ये नौ विकल्प हुए हैं ऐसा जानना चाहिये । और ये नौ विकल्प एक पुद्गल परमाणु का दूसरे पुद्गल परमाणु के साथ स्पर्श होने में गौतन ने उत्थापित कर प्रभु से प्रश्नों के रूप में पूछे हैं। इनका समाधान करते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं-( गोयमा ! णो देसेणं देसं फुसइ) हे गौतम ! जब परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल का स्पर्श करता है तो वह उस दूसरे पुद्गल परमाणु का स्पर्श अपने एकदेश से उसके एकदेश को छूकरके नहीं करता है ( णो देसेणं देसे फुमइ ) और न वह अपने एक देश से उसके अनेक देशों को छू करके ही करता है ( णो देसेणं सव्व फुसइ) और न वह पुद्गल परमाणु अपने एकदेश से उसे समस्त को छू करके उसका पूरे रूप में स्पर्श करता है। (णो देसेहिं देसं फुसइ) और न वह पहिला पुद्गल परमाणु दूसरे पुद्गल परमाणु का स्पर्श करते समय ऐसा भी नहीं करता है कि अपने अनेक देशी द्वारा उस વિકલ્પ બનાવ્યા છે, “ઘણું દેશ” આ પદ સાથે બીજા પરમાણુ પુલના એક દેશ, ઘણા દેશે અને સમસ્ત દેશને અને બીજાં ત્રણ વિકલ્પ બનાવ્યા છે. એક પરમાણુના “સમસ્ત દેશે ' આ શબ્દ સાથે બીજા પરમાણુના એક દેશ, ઘણા દેશો અને સમસ્ત દેશને અનુકમે જવાથી ત્રીજા ત્રણ વિક બનાવવામાં આવ્યા છે.
હવે ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નોને મહાવીર પ્રભુ શે જવાબ આપે છે તે मतामा माछ-" गोयमा ! णो देसेण देसं फुपह" गौतम ! न्यारे એક પરમાણુ પુલ બીજા પરમાણુપુલને સ્પર્શ કરે છે, ત્યારે તે पाताना मे भागधी तेना मे भागने। -५श ४२ नथी, “णो देसेण देसं फुसाइ” भने ते पोताना मे लागथी तेना घl मागाने। २५श ५५५ ४२तु नथी, “णो देसेण सब्व फुमइ” भने ते पोताना में शिथी तन। समस्त देशान। ५ २५० ४२ नथी, “णो देसे हि देसं फुसइ” ते पाताना घर
श्री.भगवती सूत्र:४