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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०५ उ०७ सू०२ परमाणुपुद्गलादिस्वरूपनिरूपणम् ४६७ वा, ! ' हे मदन्त ! स खलु परमाणुपुद्गलः तत्र असिधारायां, क्षुरधारायां वा स्थितः सन् छिद्येत वा-द्विधाभावं गच्छेत् , भिधेत वा ? विदारणभावं प्राप्नुयात् ? भगवानाह-' गोयमा ! णो इणढे समढे ' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नैतत्संभवति, यतः ‘णो खलु तत्थ सत्थं कमइ' नो खलु तत्र परमाणुपुद्गले शस्त्रम् क्रामति, परमाणुतया तत्र शस्त्रक्रमणं नैव संभवति अन्यथा परमाणुखमेव न स्यात् , ' एवं जाव-असंखेज्जपएसिओ' एवं तथैव यावत्-असंख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो प्रकार की आशंका भी उद्भूत हुई कि जब पुद्गल का परमाणु तलवार आदि की धार पर अवगाहित हो सकता है तो उसके द्वारा छेदन भेदन भी होता होगा इसी बात को वे प्रश्न के रूप में प्रभु से पूछते हैं कि (से णं भंते तत्थ छिज्जेज्जा वा भिज्जेज्जा वा) हे भदन्त ! जब वह पुद्गल परमाणु वहां पर ठहर सकता है तो ऐसी स्थिति में अत्यन्त निशित (तिखी) तलवार की धार से वह छिद भिद सकता होगा। दो टुकड़े के रूप में किसी वस्तु का हो जाना इसका नाम छिदना है और केवल चिर जाना इसका नाम भिद जाना है। इसके समाधान निमित्त प्रभु कहते हैं (णो इणढे सम?) हे गौतम ! यह बात नहीं है कि तलवार आदि की धार से परमाणु का छेदन भेदन हो जावे, क्यों कि (णो खलु तत्थ सत्थं कमइ) शस्त्र का प्रभाव उस पुद्गल परमाणु पर नहीं पड़ सकता है। तात्पर्य कहने का यह है कि शस्त्र में ऐसी शक्ति नहीं है जो वह पुद्गल परमाणु के भीतर प्रविष्ट होकर उसके दो टुकडे कर सके या उसे चीर सके। यदि शस्त्र इस प्रकार से उसे कर देता है तो થાય છે કે તલવાર અથવા અન્ઝાની ધાર ઉપર રહેલા પુલ પરમાણુનું છેદન ભેદન થતું હશે કે નહીં ? તેના સમાધાન માટે તેઓ મહાવીર પ્રભુને આ प्रश्न पूछे छ—“ से ण भंते ! तत्थ छिज्जेज्जा वा भिज्जेज्जा वो ?" ભદન્ત ! જે તે પુદ્ગલ–પરમાણુ ત્યાં રહેતું હોય, તે તલવાર અથવા અજ્ઞાની તીક્ષણ ધારથી તેનું છેદન-ભેદન પણ થતું હશે ? (કઈ પણ વસ્તુના બે ટુકડા થવા તેનું નામ છેદન છે. પણ ફક્ત ચિરાઈ જવું, તેને ભેદન કહે છે.) મહાवीर प्रभु भने म प्रभारी सामसापेछ-" णो इणढे समटे" गौतम! से समवी २४तुनथा. १२५ " णो खलु तत्थ सत्थ कमइ” शसना પ્રભાવ તે પુદ્ગલ પર પડી શકતું નથી. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે શસ્ત્રમાં એવી તાકાત નથી કે તે પુદ્ગલ પરમાણુની અંદર પ્રવેશ કરીને તેના બે ટુકડા કરી શકે અથવા ચીરી શકે. જે શસ્ત્ર તેના ટુકડા કરી શકે તે તે પલ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪