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भगवती ये ते एत्रमाहुः, मिथ्या ते एचमाहुः अहं पुनगौतम ! एवम् आख्यामि-यावत्एवमेव चत्वारि, पञ्च योजनशतानि बहुसमाकीर्णो नरकलोको नैरयिकैः ॥ सू० ५॥
टीका-सम्यक प्ररूपणाधिकारात् मिथ्यानरूपणनिरसनपुरस्सरं सम्यक् प्ररूपणं प्रतिपादयितुमाह-' अन्न उत्थियाणं भंते !' इत्यादि। 'अन्नउत्थियाणं भंते ! एवं आइक्वंति, जाव-परूवेति' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! अन्ययूथिकाः अन्यतीथिका खलु एवं-वक्ष्यमाणपकारेण आख्यान्ति कथयन्ति यावत्-भाषन्ते प्रज्ञापयन्ति प्ररूपयन्ति । तद्वक्तव्यतापाह-' से जहा नामए जुबई जुवाणे हत्थेणं एवं ) सो हे भदन्त ! ऐसा कैसे हो सकता है ? ( गोयमा ! जं गं ते अ. न्नउत्थिया जाव मणुस्से हिं जे ते एवमाहंतु-मिच्छा ते एवमासु ) हे गौतम ! अन्यतीथिक जनों ने जो ऐसा कहा है कि मनुष्य लोक चार पांच सौ योजन तक मनुष्यो से ग्वचाखच भरा हुआ है सो ऐसा उन्हों ने असत्य कहा है ( अहं पुण,गोथमा ! एवं आइक्खामि, जात्र एवामेव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइन्ने निरयलोए नेरइएहिं ) हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूं-यावत् इसी तरह से चार पांच सौ योजनतक निरय लोक नारकियों से खचा खच भरा हुआ है।
टीकार्थ-सम्यक् प्ररूपणा का अधिकार होने से मिथ्या प्ररूपणा के निराकरण पूर्वक सूत्रकार इस सूत्रद्वारा सम्यक् प्ररूपणा का प्रतिपादन करते हैं-इस में गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं कि ( अन्नउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति जाव परूवेति) हे भदन्त ! जो अन्यतीर्थिक जन इस प्रकार से कहते हैं यावत्-भाषण करते हैं, जतलाते हैं, प्ररूप
महन्त ! मेवी रीत ससवी छ ? ( गोयमा ! जण ते अन्नउत्थिया जाव मणुस्सेहि जे ते एवमाहंसु-मिच्छा ते एवमासु) 3 गौतम ! मन्य મતવાદીઓ એવું જે કહે છે કે મનુષ્યલેક ચાર, પાંચસે જન સુધી મનુध्याथी भायाभीय मरे। छ, ते तमनुं ४थन सत्य छे. ( अहं पुण गोयमा ! एवं आइस्खामि, जाव एवामेव चत्तारि पंचजोयणसयाई बहुसमाइन्ने निरयलोए नेरहपहि) 3 गीतम! हुं तो मे ४९ छु, ना२४४ यार, पाय से જન પર્યન્ત નારકોથી ખીચોખીચ ભરેલે છે
ટકાર્થ– મિથ્યા પ્રરૂપણાનું ખંડન કરીને સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા સમ્યક प्र३५यातुं प्रतिपादन ४रे छ. गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे-( अण्ण उत्थियाण' भते ! एवं आइक्खंति जाव परुति) 3 महन्त ! अन्यता એવું કહે છે, એવું ભાંખે છે ( વિશેષ કથન કરે છે ) એવી પ્રજ્ઞાપના કરે
श्री. भगवती सूत्र:४