SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ०६ सू०१ कर्मविषये निरूपणम् ३६९ गरहित्ता अवमन्नित्ता,अन्नयरेणं, अमणुम्नेणं अपीइकारएणं,असण-पाणखाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता' तथारूपं श्रमणं वा ब्राह्मणं वा, हीलित्वा जन्मकर्ममर्मोद्घाटनपूर्वकमवहेलनां कृता,निन्दित्वा-कुत्सितशब्दपूर्वकं दोषोद्घाटनेन अनादरं कृत्वा, खिसित्वा -हस्तमुखादिविकारपूर्वकमपमानं कृत्वा, गर्हित्वा-गुर्वादिसमक्षं दोषाविष्करणपूर्वक तिरस्कारं कृत्वा, अवमान्य-अनभ्युत्थानादिना अपमानं कृत्वा, अन्यतरेण बहूनामन्यतमेन एकेन केनचित् अमनोज्ञेन अमजुलेन, अप्रीतिजनकेन अशन-पान --खादिम-स्वादिमेन प्रतिलाम्य लाभवन्तं कृत्वा ' एवं खलु जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ' एवम् उक्तरीत्या खलु जीवाः अशुभदीर्घायुष्कतायै वाद का सेवन करके ' तहारूवं समण वा माहणं वा हीलित्ता, निंदित्ता, खिसित्ता, गरहित्ता, अवमन्नित्ता, अन्नयरेणं अमणुन्नेणं, अपीइकारएणं असणपाणखाइमसाइभेणं पडिलाभेत्ता' और तथारूप निरति चार पूर्वक संयम का पालन करने वाले श्रमण जनकी अथवा जो स्वयं हिंसा से निवृत्त हुआ दूसरों को " माहन " मत मारो ऐसा कहता है ऐसे माहण की अथवा जो ब्रह्मचर्य या कुशल अनुष्ठान को धारण पालन करता है ऐसे माहण का, उसके जन्म कर्म और मर्म का उद्घाटन करके अवहेलना करना, कुत्सित शब्दोच्चारण पूर्वक दोषोद्धाटन करते हुए उसका अनादर करना, अपने हस्त मुख आदि को विकृत बनाते हुए उनका अपमान करना, गुर्वादि जनों के समक्ष उनके दोषों को प्रकट करते हुए उनका तिरस्कार करना उनके आने पर नहीं उठना इत्यादि तरह से उनका अपमान करना तथा चारों प्रकार के आहार में से किसी एक अमनोज्ञ, अप्रीतिकारक ऐसे अशन, अथवा पान आदि आहार द्वारा उन्हें लाभित करना, इत्यादि इन सब कोमों के करमुसवइत्ता,) है गौतम! वोनी डिसा प्रशने, भृषावा ( असत्य पाणी) मोबीन तहारूव समणं वा, माहणं वा, हीलित्ता, निंदीत्ता, खिसित्ता, गरहित्ता, अवमाणित्ता, अण्णयरेणं, अमणुण्णेणं, अपीइकारणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेसा,) तथा शुद्ध संयमनुं पासन ४२नार श्रम मानी (२ पोते હિંસાથી નિવૃત્ત થયેલ છે અને બીજાને હિંસા ન કરવાનો ઉપદેશ આપે છે અને જે બ્રહ્મચર્ય તથા બીજા અનુષ્ઠાનેનું પાલન કરે છે તેને માહન કહે છે) અવહેલના કરે છે, તેમનો અનાદર કરે છે, તેમની નિંદા કરે છે, તેમનો તિરસ્કાર કરે છે, તેમનું અપમાન કરે છે તથા ચારે પ્રકારના આહારમાંથી કઈ એક અમનોજ્ઞ, અપ્રીતિકારક અશન અથવા પાન અથવા ખાદ્ય અથવા સ્વાદ્ય આહાર તેમને વહેવરાવે છે, એ જીવ અશુભ દીર્ધાયુનો બંધ કરે म ४७ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy