SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ५ उ०५ सू० २ अन्यतीथिकवक्तव्यताकथनम् ३५९ नेरइया जहा कडाकम्मा तहा वेयण वेयंति ' हे गौतम ! ये खलु नैरयिकाःयथाकृतानि येन क्रमेण उपार्जितानि कर्माणि तथा तेन क्रमेणैव वेदनां वेदयन्ति 'तेणं नेरइया एवं भूयं वेयणं वेयंति ' ते खलु नैरयिकाः एवं भूताम् उपयुक्त रूपाम् वेदनां वेदयन्ति काल सौकरिकादिवत् , अथ च जे णे नेरइया जहा कडा कम्मा णो तहा वेयर्ण वेयंति' ये खलु नैरयिकाः यथाकृतानि कर्माणि, नो तथा वेदनां वेदयन्ति । तेणं नेरइया अणेवंभूयं वेयर्ण वेयंति' ते खलु नैरयिकाः अनेवभूतां तद्विपरीतामपि वेदनां वेदयन्ति श्रेणिकादिवत् । ' से तेणटेणं ' तत् से करते हैं-इस पर प्रभु उनसे ‘गोयमा ! जेण नेरइया जहा कडा कम्मा तहा वेयणं वेयंति ' इस पाठ द्वारा कहते हैं कि हे गौतम ! नारक जीव जैसा कर्म करते हैं-अथवा जैसा उन्हों ने कर्म उपार्जित किया है उसी क्रमसे वे वेदना को भोगते हैं इस कारण वे ' तेणं नेरइया एवं भूयं वेयणं वेयंति ' काल सौकरिकादि की तरह एवंभूत वेदना को भोगते हैं ऐसा कहा जाता है और · जेणे नेरइया' जो नारक जीव 'जहा कडा कम्मा, णो तहा वेयणं वेयंति, तेणं नेरइया अणेवभूयं वेयणं वेयंति ' जैसा उन्हों ने कर्म किया है श्रेणिक आदि की तरह उस के अनुसार वेदना को नहीं भोगते हैं वे नारकजीव अनेव भूत वेदना को भोगते हैं ऐसा कहा जाता है । तात्पर्य ऐसा है कि जैसा कर्म किया हैं वेसी वे उसकी वेदना का अनुभव नहीं करते हैं, किन्तु उससे विप रीत वेदना का अनुभव करते हैं अतः अनेवंभूत वेदना को भी वे भोगते हैं ऐसा माना जा सकता है । ' से तेणटेणं' इसी कारण हे गौतम ! मैंने વેદન કહે છે અથવા જેવા કર્મો ઉપાર્જીત કર્યા હોય તેને અનુરૂપ વેદનાનું વેદન કરે છે અથવા તેમણે જે પ્રકારનો કર્મબંધ બાંધ્યું હોય તે અનુસાર વેદનાને અનુलव ४२ छ, (ते णं नेरइया एवं भूय वेयंति" से सौ२ि४ ४साधना भाते नारी मे भूत वहनाने लागवे छे, मेवु ४ामा मावे छ ५२न्तु (जे णं नेरइया) २ ना२४ पो (जहा कडा कम्मा णो तहा वेयणं वेयंति) तेभर ४२सां न अनु३५ वेहनानुं वहन (श्रेणि २०नी मा३४) ४२ता ५ नथी, ( ते णं नेरइया अणेवंभूय वेयर्ण देयंति ) ते ना२) सने भूत वहनानु वेहन ४२ छ, सम કહેવાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તેમણે જેવા કર્મો કર્યા હોય, એવી વેદનાને અનુભવ તેવો કરતા નથી, પણ એથી જુદા જ પ્રકારની વેદનાને પણ અનુભવ કરે છે. તેથી તેઓ અનેવંભૂત વેદનાને પણ ભગવે છે, એવું માની साय छे. (से तेणठेण.) गौतम ! ना२६ मोना भवन भारत શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy