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________________ ३१० भगवतीय हेउ वा, कारणं वा, पसिणं वा वागरणं वा, पुच्छंति" हे गौतम ! यत् खलु अनुत्तरौपपातिका देवाः तत्रस्थितश्चैव सन्तः अर्थ वा, हेतुं वा, कारणं वा, प्रश्नं वा, व्याकरणं वा, केवलिनं पृच्छन्ति, 'तणं इहगए केवली अट्ठ वा जाव-वागरणं वा वागरेइ ' तत् खलु इहगतः अत्रस्थित एव केवलो केवलज्ञानी अर्थ वा, यावत्व्याकरणं वा व्याकरोति, उत्तरदानेन स्पष्टीकरोति । तदुपसंहरति-से तेणद्वेगं०' इत्यादि । हे गौतम ! तत् तेनार्थेन प्रभवः समर्थाः खलु अनुत्तरवैमानिका देवाः तत्रस्थिताः सन्त एव अत्रस्थितेन केवलिना साकम् आलापादिकं कर्तुम् , गौतमः पुनः पृच्छति-'जणं भंते ! इहगए चेव केवली अट्ट वा जाव-वागरेई' हे भदन्त ! देवा) जो अनुत्तर विमानवासी देव (तत्थ गया चेव समाणा) अपने निज स्थान पर रहकर ही ( अटुं वा, हेउं वा, कारणं वा) अर्थ को, हेतु को, कारण को ( पसिणं वा) प्रश्न कों ( वागरणं वा ) अथवा व्याकरण को-विशेष स्पष्टीकरण को (पुच्छंति ) केवली भगवान से पूछते हैं (तं णं) उस (अहं वा जाय वागरणं वा) अर्थ का यावत् व्याकरण-विशेष पूछे हुए स्पष्टीकरण का (इहगए केवली) यहां पर रहे हुए वे केवली भगवान् (वागरेइ) उत्तर देते हैं। (से तेणटेण० ) इसमें यहीं कारण है अतः हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि अनुत्तरविमानवासी देव आपने स्थान पर स्थित होकर ही यहां पर स्थित केवली के साथ आलाप संलाप करने के लिये समर्थ हैं । अब गौतमस्वमी प्रभु से यह पूछते हैं कि (जं णं भंते!) हे भदन्त ! जो (इहगए चेव केवली) यहां स्थित ही केवली (अटुं वा जाव वागरेइ ) अर्थ को ( ज ण अणुत्तरोवाइया देवा तत्थगया चेव समाणा) मनुत्तर विमानवासी वो तभने स्थान २डी २ ( अद्र वा, हेउवा, पसिणं वा, वापरण'षा) भ, उतु, ४।२६], प्रश्न ५२१॥ व्या१२८ ( विशेष २५०टी४२११ ) ( पुच्छंति) ना विषयमा प्रश्न पूछे छ, ( त ण अट्ठ वा जाय वागरण वा इहगए केवली घागरेइ) ते अर्थ थी व्या४२६५ पयत प्रश्नोन। २मनुष्य सभा २९॥ vil लापान उत्तर मा छ- " से तेणटुण ० " ते ॥२६, गौतम ! में એવું કહ્યું છે કે અનુત્તર વિમાનવારસી દે તેમનાં વિમાનમાં રહીને જ આ લકમાં રહેલા કેવળી ભગવાનની સાથે વાર્તાલાપ કરી શકવાને સમર્થ હોય છે. वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने माने 4 भूछे छे ।-( णं भंते ! इह गप व केवली अटुं वा जाव वागरेइ) 3 werd! An मनुष्य asti શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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