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________________ २९२ भगवती सूत्रे टीका - केवलिच्छद्मस्थयोः प्रस्तावान् तयोर्विशेषवक्तव्यतामाह'केवली भंते !' इत्यादि । ' केवली णं भंते ! चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा जाणइ, पास, ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! केवली केवलज्ञानी खलु चरमकर्म वा, यत् किल शैलेशी चरमसमये अनुभूयते तत् चरमकर्म, अथ चरम निर्जरां वा, या हि शैलेशीचरमसमये जायमाना निर्जरा -- जीवमदेशेभ्यः कर्मणः सर्वथा परिशटनं तामित्यर्थः, जानाति, पश्यति किम् ? भगवानाह - 'हंता, गोमा ! जाग, पास' हे गौतम ! हन्त, सत्यम्, केवली चरमकर्मादिकं जानाति, पश्यति । ततो गौतमः पृच्छति' जहाणं भंते ! केवली चरिमकम्मं वा रिमनिज्जरं वा० ?' इत्यादि, हे भदन्त ! यथा खलु केवली चरमकर्म वा चरम ― टीकार्थ- केवली और छद्मस्थ के प्रस्ताव से इन दोनों की विशेष वक्तव्यता को इस सूत्रद्वारा शास्त्रकार प्रकट कर रहे हैं - इस में सर्वप्रथम गौतम स्वामी प्रभु से पूछ रहे हैं कि- ' केवली णं भंते ! चरिमकम्मं वा, चरिमणिज्जरं वा, जाणइ, पासह ? ' हे भदन्त ! केवली मनुष्यकेवल ज्ञानी, शैलेशी के अन्तिम समय में जो अनुभव में किया जाता है ऐसे चरम कर्म को, अथवा चरम निर्जरा को शैलेशी के अन्तिम समय में जो जीव के प्रदेशों से सर्वथा परिशटन रूप कर्म का झड़ना होता है ऐसी उस चरम निर्जरा को क्या जानते और देखते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि- 'हंता, गोयमा ! जाणइ पास, ' हां गौतम ! केवली ज्ञानी चरम कर्मादिक को जानते देखते हैं। अब गौतम स्वामी पुनः प्रभु से पूछते हैं- 'जहा णं भंते ! केवली चरिमकम्मं वा चरिमनिज्जरं वा' हे भदन्त ! जिस प्रकार से केवली ટીકા-સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા કેવલી અને છદ્મસ્થ વિષે વિશેષ વિવેચન अरे छे. गौतम स्वामी महावीर अलुने पूछे छे - ( केवली ण भंते ! चरिमकम्मं वा चरिमणिज्जर वा जाणइ पासइ ? ) हे लढन्त ! वणज्ञानी शुद्ध अन्तिम કાઁને અથવા અન્તિમ નિરાને જાણી-દેખી શકે છે ? પ્રશ્નનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે–કેવળજ્ઞાની, શૈલેશીના અન્તિમ સમયે જેનેા અનુભવ કરાય છે એવા અન્તિમ કને અથવા શૈલેશીના અન્તિમ સમયે આત્મપ્રદેશેામાંથી કર્મોને સવ થા ખંખેરી નાખવારૂપ જે અન્તિમ નિર્જરા થતી હોય છે તેને શુ` જાણી દેખી શકે छे? ते प्रश्ननो वा आयता भडावीर प्रभु उडे छे - (हता गोयमा ! जाणइ पासइ) હા ગૌતમ ! કેવળજ્ઞાની છત્ર ચરમ કર્માદિકને જાણે છે અનેદેખે છે. श्री भगवती सूत्र : ४ डवे गौतम स्वाभी महावीर प्रभुने जीने प्रश्न पूछे छे - ( जहाणं भंते ! haat after वा चरिमनिज्जर वा ) हे लहन्त ! नेत्री रीते प्रेषणज्ञानी
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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