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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ० १ ० २ रात्रिदिवस स्वरूपनिरूपण
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भवइ, तयाणं उत्तर वि, जयाणं उत्तरड्डे तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम- पच्चत्थिमेणं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ ? हंता, गोयमा ! एवं चैव उच्चारेयव्वं, जाव-राई भवइ, जयाणं भंते ? जंबुद्दीवे दीवे मंदर स्स पव्वयस्स पुरस्थिमेणं जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तयाणं पञ्च्चत्थिमेणं वि, जयाणं पञ्च्चत्थिमेणं वि, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ ? हंता. गोयमा ? जाव राई भवइ || सू० २ ॥
छाया - यदा खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणार्धे दिवसो भवति तदा खलु उसराधेऽपि दिवसो भवति, यदा खलु उत्तरार्धेऽपि दिवसोभवति, तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्य - पश्चिमे खलु रात्रिर्भवति ? हन्त, गौतम ! यदा जम्बू( जयाणं भंते ! ) इत्यादि ।
सूत्रार्थ - ( जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्डे दिवसे हव) हे भदन्त ! जब जंबूद्वीप में दक्षिणार्ध में दिन होता है ( तयाणं उत्तर वि दिवसे भव) तब उत्तरार्ध में भी दिवस होता है। और (जयाणं उत्तरडेऽवि दिवसे भवइ, तथा णं जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं राई हवइ ) जब उत्तरार्ध में भी दिवस होता है तब
"" जयाणं भंते ! " छत्याहि
सूत्रार्थ - (जयाणं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे दिवसेहवइ) हे लहन्त ! क्यारे ४यूद्वीपना दृक्षिणार्धभां दिवस होय छे, ( तया णं उत्तरड़्ढे वि दिवसे भवइ ) त्यारे उत्तरार्धभां पशु शु द्विवस होय छे ? भने ( जयाणं उत्तरडूढेऽवि दिवसे भवइ, तयाण जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमपञ्चत्थिमेणं राई डुबइ ) क्यारे उत्तरार्धमा पशु हिवस होय छे, त्यारे यूद्वीपसां सुमेरु
श्री भगवती सूत्र : ४