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________________ २५० भगवती सूत्रे बन्तं महावीरं मनसा चैत्र वन्देते नमस्यतच, 'मणसा वेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति' मनसा चैव इदम् एतदूपम् वक्ष्यमाणस्वरूपं व्याकरणम् व्याक्रियते स्पष्टीक्रियते स्वाभिप्रायः अनेनेति व्याकरणम् स्पष्टीकरण हेतुभूतं प्रश्नवाक्यं पृच्छतः - किं पृच्छतः ? इत्याह-' करणं भंते! देवाणुप्पियाणं अंतेवासि सवाई सिज्झिहिति, जाव अंते करेहिंति ?' हे भदन्त । कति कियन्ति खलु देवानुप्रियाणाम् भवतां अन्तेवासिशतानि कतिशतसंख्यका अन्तेवासिनः सेत्स्यन्ति-सिद्धिं गमि भगवं महावीरं मणसा चैव वदति, नमसंति ) महावीर प्रभु के समीप आकर उन देवों ने श्रमण भगवान् को मन से ही वंदना की-मन से ही उन्हें नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार मानसिक, कायिक, और वाचनिक के भेद से तीन प्रकार के हैं-सो यहां पर उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर की मानसिक वंदना और मानसिक नमस्कार ही किया- कायिक वाचनिक नहीं (मणसा चेव इमं एग्रारूवं वागरणं पुच्छंति ) इसी प्रकार से उन्हें जो कुछ पूछने के योग्य था वह भी उन्हों ने मन से ही पूछा- तात्पर्य यह हैं कि भगवान् महावीर स्वामी के समीप प्रकट होकर भी देवों ने प्रकट रूप में उनसे कुछ नहीं पूछा- किन्तु अपने मनसे ही प्रश्न किया कि - ( कहणं भंते देवाणुप्पियाणं अतेवासिसयाई सिज्झिहिंति) हे भदन्त ! आप देवानुप्रिय के कितने सौ शिष्य सिद्धिपद को प्राप्त करेंगे ? प्रश्न को “व्याकरण " इस लिये कहा गया है कि इस के द्वारा प्रश्न कर्त्ता अपना अभिप्राय स्पष्ट करता है । ( जाव अंतंकरेंहिंति ) यावत् कितने सौ शिष्य अन्त करेंगे-यहां यावत् શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદા નમસ્કાર કર્યાં. વંદા નમસ્કારના ત્રણ ભેદ छे – (१) मानसिङ, (२) अयि अने (3) वाथिङ. ते भन्ने हेवा लगवानने માનસિક વંદણા નમરકાર કર્યાં, વાચિક કે કાયિક વૠણા નમસ્કાર કર્યો નહીં. मणसा चेव इमं एयारूत्र वागरणं पुच्छति " તેમણે ભગવાન મહાવીરને જે કંઈ પૂછવું હતુ તે મનથી જ પૂછ્યું. કહેવાનું તાત્પ એ છે કે ભગવાન મહાવીર પાસે પ્રકટ થયા પછી તેમણે તેમને પ્રકટ રીતે (વાણી દ્વારા ) કઈ यस्य न पूछयु, पशु भनथी अझरनो प्रश्न पूछयो - " कइणं भंते! देवाणुप्पियाणं अतेवासिसयाई सिज्झिहिंति ? ” हे लहन्त ! आय हेवानुप्रियना કેટલા સા શિષ્ય સિદ્ધપદ પામશે ? ( પ્રશ્નને વ્યાકરણ કહેવાનું કારણ એ છે કે તેના દ્વારા પ્રશ્નકર્તા પેાતાના અભિપ્રાયનું સ્પષ્ટીકરણુ મેળવી શકે છે. ) << जा अंतं करेहिति ? " भने समस्त दुःयोनो मत रशे ? ” अडी 66 जाव ( यावत् ) पहथी " भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति, परिनिर्वास्यन्ति, सर्वदुःखानां "" श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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