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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ 30 ४ सू० ५ शिष्यद्वयस्वरूपनिरूपणम् २४७ अवादिष्टाम् – एवं खलु भगवन् ! आवां महाशुक्रात्. करपात . महास्वर्गात महाविमानाद् द्वौ देनौ महधिको, यावत्-प्रादुर्भूती, ततः आवाम् श्रमणं भग वन्तं महावीरम् वन्दावहे, नमस्यावः. वन्दित्वा, नमस्थित्वा, मनसा चैव इमानि एतद्रूपाणि व्याकरणानि पृच्छावः, कति भदन्त ! देवानुपियाणाम् अन्तेवासिशतानि सेत्स्यन्ति, योवत्-अन्तं करिष्यन्ति ? ततः श्रमणो भगवान् महावीरः आवाभ्यां मनसा पृष्टः, आवां मनसा चैव इदम् एतद्रूपम् व्याकरणं व्याकरोति, एवं खलु अम्हे महालुक्काओ कप्पाओ महासग्गाओ महाविमाणाआ दो देवा हडिया जाव पाउन्भूया ) हे भदन्त ! महाऋद्धिवाले यावत् हम दोनों देव महाशुक्र कल्प से महास्वर्ग ( सातवें देवलोक ) नामके बडे विमान से यहां आये हैं । (तएणं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो) यहां आकर हमने श्रमण भगवान महावीर को वंदना की है उन्हें नमस्कार किया है । ( वंदित्ता नमंसित्ता मणसा चेव इमाई एयारवाई वागरणाई पुच्छामो) वंदना और नमस्कार करके फिर हम लोगों ने मन से ही उनसे इस प्रकार के इन प्रश्नों को पूछा ( करणं भंते ! देवानुप्पियाणं अतेवासिसयाई सिझिहिति, जाव अंतं करिहिति) हे भदन्त ! आप देवानुप्रिय के कितने सौ शिष्य सिद्धिपद पावेंगे यावत् समस्त दुःखांका नाश करेंगे। (तएणं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पुढे मणसा चेव इम एयारूवं वागरणं वागरेइ) इस प्रकार हमलोगों के द्वारा मन से पूछे गये श्रमण भगवान् महावीर ने हमलोगों को मन से ही इस प्रकार का यह उत्तर दिया (एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम सत्त भंते ! अम्हे महासुकाओ कप्पाओ महासग्गाओ महाविमाणाओ दो देवा मह रदिया जाव पाउम्भूया ) 3 महन्त ! मद्धि माहिया युत सेवा समे બે દેવ મહાશુક નામના સાતમાં દેવકના મહાસ્વર્ગ નામના મહાવિમાનમાંથી सही माया छीये. ( तएणं अम्हे समण भगवं महावीर वदामो नमसामो) અહીં આવીને અમે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણ કરી અને નમસ્કાર કર્યા. ( वंदित्ता नमंसित्ता मणसा चेव इमाई एयारवाई वागरणाई पुच्छामो) | नभ२४।२ ४रीने अभे भनथी । तेमने 240 ४१२ना प्रश्नी ५७या उता-(कइणं भंते ! देवाणुप्पियाण, अतेवासिसयाइ सिज्झिहिंति, जाव अंत करिहिति) 3 ભદન્ત ! આપ દેવાનુપ્રિયના કેટલા સે શિષ્ય સિદ્ધપદ પામશે અને સમસ્ત :नो मत ४२ ? (तएण समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पुढे, अम्हे मणसा चेव इम एयारूवं वागरण वागरेइ ) म भनथी । पछेसा प्रश्ननी શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે મનથી જ આ પ્રમાણે ઉત્તર આપ્યો શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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