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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श० ५ उ०३ सू० । हरिनैगमेषिदेवशक्तिनिरूपणम् २३३ पादयितुमाह-गौतमः पृच्छति-पभूणं भंते ! हरिणेगमेसी सकस्सणं दूए ' हे भदन्त ! प्रभुः समर्थः खलु किम् हरिनैगमेषी शक्रस्य दूतः ' इत्थी गम्भं नह सिरंसिवा' स्त्रीगर्भ नखशिरसि वा नखानां शिरः अग्रं नखशिरस्तस्मिन् नखा. प्रमार्गेणेत्यर्थः रोमकूसिवा' रोमकूपे वा रोमच्छिद्रद्वारेण वा 'संहरित्तए वा' संहर्तुम् आभ्यन्तरे प्रवेशयितुं वा, 'नीहरित्तए वा ' निहतुम् नखानद्वारा रोमकूपद्वारा वा बहिनिष्कासयितुं समर्थः किम् । इति पूर्वेण सम्बन्धः भगवान तदङ्गा कुर्वनाह-'हता, पभू' इत्यादि । हे गौतम ! हन्त, सत्यं प्रभुः त्वदुक्तरीत्या समर्थः खलु स हरिनैगमेषी तथा कर्तुम् , किन्तु गर्भाशयात् निष्कासनसमये 'नो चेव णं तस्स गम्भस्स किंचि वि आवाहं वा विवाह वा उप्पाएजा वा' नो चैव खलु तस्य गर्भ स्य काश्चिदपि किश्चित्मकारामपि आवाधाम् ईषत्पीडां वा, व्यायाधाम्-विशिष्टपीडां सामर्थ्य कैसी क्या है इस बात को जानने के लिये गौतम प्रभु से पूछते हैं कि-(पभू णं भंते ! हरिणेगमेसी सक्कस्स दुए) हे भदन्त ! शक्र का द्त वह हरिनेगमेषी ऐसा समर्थ है क्या ? जो वह 'इत्थीग भ) स्त्री के गर्भ को (नहसिरंसि) नखाग्रमार्ग द्वारा (रोमकूवंसि) अथवा रोमछिद्र द्वारा (साहरित्तए) भीतर प्रवेश करोदे, तथा नखानमार्गद्वारा अथवा रोमछिद्रद्वारा उसे बहार निकाल ले ? प्रभु इसके उत्तर में गौतम से कहते है कि-(हंता पभू) हे गौतम ! हां, वह इस प्रकार से करने के लिये समर्थ हैं। किन्तु गर्भाशय से गर्भ को निकाल ते समय (नो चेव णं तस्स गम्भस्स किं चि वि आवाहं वा विवाहं वा उप्पाएज्जा) वह उस गर्भ को थोड़ी बहुत भी पीड़ा नहीं पहुंचाता है। थोड़ी पीडा का नाम आयाधा और विशिष्ट पीड़ा का नाम व्यावाधा है गौतम स्वामीना प्रश्न-“पभूण भते ! हरिणेगमेसा सकस्सदए इत्थी गम्भ' नहसिरसि रोयकूब'सि साहरित्तए ? " महन्त ! शु शन्द्रना त હરિણેગમેલી દેવમાં, સ્ત્રીના ગર્ભને નખાઝમાર્ગ દ્વારા અથવા રોમછિદ્ર દ્વારા અંદર પ્રવેશ કરાવી દેવાનું અને નખાઝમાર્ગ દ્વારા અથવા રોમછિદ્ર દ્વારા તેને બહાર કાઢી શકવાનું સામર્થ્ય છે ખરું? मडावीर प्रभु ते प्रश्न ४१५ मापता ४ छ.- “हता पभू" હા ગૌતમ ! તે એમ કરવાને સમર્થ છે. પણ ગર્ભાશયમાંથી ગર્ભને બહાર ४५८ मते “नो चेव ण गब्भस्स किं चि वि आवाह वा विवाह वा उम्पाएज्जा" ते व ते गलने सडे ५५ पी। थपाते। नथी. 'माया' એટલે થોડી પીડાં અને “વ્યાબાધા ” એટલે અધિક પીડા. એટલું જ નહી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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