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भगवतीसूत्र पेक्षया केवलिनो विशेषतामाह-'जहा हसेज्ज वा, तहा' यथा हसेत् वा, तथा, पूर्व यथा छद्मस्थ-केवलि नोः हासादिविषये प्रश्नोत्तर प्रतिपादितं तथा तयो निद्रादिविषयेऽपि प्रश्नोत्तरं विज्ञेयम् , परन्तु ‘णवरं-दरिसणा वरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं निदायति वा, पयलाइंति वा, सेणं केवलिस्स नत्थि, अन्नं तं चेव' नवरम्-विशेषस्तु पुनरयम्-छद्मस्थमनुष्या दर्शनावरणस्य कर्मणः उदयेन निद्रायन्ते वा, प्रचलायन्ते वा, तत् दर्शनावरण कर्म केवलिनो नास्ति, अतश्छद्मस्थवत् केवली नो निद्रायते वा, प्रचलायते का, अन्यत् सर्व तदेव पूर्ववदेव बोध्यम् । में छद्मस्थ की अपेक्षा से क्या विशेषता है वह सूत्रकार (जहा हसे. जज वा तहा) इत्यादि सूत्र पाठ द्वारा प्रकट करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार से पहिले छद्मस्थ और केवली के हास आदि के विषय में प्रश्नोत्तर प्रतिपादित किये जा चुके हैं उसी तरहसे इन दोनों के निद्रा आदि के विषय में भी प्रश्नोत्तर जान लेना चाहिये। (नवरं) परन्तु जो पहिले प्रश्नोत्तर की अपेक्षा यहां के प्रश्नोत्तर में विशेषता है वह (दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं निहायन्ति, पयलाइंति वा से णं केलिस्स नत्थि-अन्नं तं चेव ) वह दर्शनावरणीय कर्म के उदय और उसके अभाव को लेकर है-तात्पर्य कहने का यह है कि निद्रा और प्रचला का अनादर्शनावरणीय कर्म के उदय में होता है-अतः इसके उदय के कारण छद्मस्थ संसारी जीव निद्रा और प्रचला वाले होते हैं परन्तु यह दर्शनावरणीय कर्म का उदय केवली के होता नहीं है क्यों कि यहां पर दर्शनावरणीय का संपूर्ण रूप से आत्यन्तिक क्षय हो जाता છવાસ્થમનુષ્ય નિદ્રા પણ લે છે અને પ્રચલા પણ લે છે. છદ્મસ્થ કરતાં કેવલી सागवानमा शी विशिष्ट डाय छे ते सूत्रसरे " जहो हस्सेज्न वा तहा त्या સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રકટ કર્યું છે. જેવી રીતે છટ્વસ્થ અને કેવલીના હાસ્યાદિકના વિષયમાં પ્રશ્નોત્તરો આ સૂત્રમાં આગળ આપવામાં આવેલા છે, એ જ પ્રમાણે तमन्ननी निद्रा वगेरेना विषयमा ५ प्रश्नोत्तरे। सम सेवा " नवरं" પણ પહેલાનાં પ્રશ્નોત્તરે કરતાં આ પ્રશ્નોત્તરોમાં જે વિશિષ્ટતા છે તે નીચેના सूत्रमा मतावाम मावी छ-( दरिसणावणिज्जस्स कम्मरस उदएणं निहायंति, पयलायति वा से णं केवलिस्स नत्थि-अन्नं तं चेत्र) निद्रा अने प्रयामा વાનું કારણ દર્શનાવરણીય કર્મને ઉદય ગણાય છે, તેથી તેને નિદ્રા અથવા પ્રચલા આવે છે. પણ કેવળજ્ઞાનીના દર્શનાવરણીયકર્મને સર્વથા ક્ષય થઈ ગયે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪