________________
२०४
भगवती सूत्रे
बा, यथा हसेद् वा तथा, नवरम् - दर्शनावरणीयस्य कर्मणः उदयेन निद्रायन्ते वा, प्रचलायन्ते वा तत् केवलिनो नास्ति, अन्यत् तदेव । जीवः खलु भदन्त ! तियों का या आठ प्रकार की कर्म प्रकृतियों का बंध करता है । इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त जान लेना चाहिये । बहुवचनवाले सूत्रों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीनभंग जानना चाहिये । (चउमत्थे णं भंते! मणुस्से निहाएज्ज वा पयलाएज्ज वा ) हे भदन्त ! छद्मस्थ मनुष्य क्या निद्रा लेता है ? तथा वह क्या खड़ा २ भी निद्रा लेता है ? (हंता निहाएज्ज वा पयलाएज्ज वा जहा हसेज्ज वा तहा - णवरं दरिसणावर णिज्जस्स कम्मस्स उदएणं निद्दायंति वा पयलायंति वा-से vihaलिस नत्थ-अनंतं चेव ) हां, गौतम ! वह निद्रा लेता है तथा बह खड़े २ भी निद्रा लेता है । जिस तरह से पहिले छमस्थ और केवली इन दोनों के विषय में हास्य वगैरह को लेकर प्रश्न और उत्तर कहे गये हैं उसी प्रकार से निद्रा को लेकर भी इन दोनों के विषय में प्रश्न और उत्तर जानना चाहिये। विशेषता केवल यही है कि दर्शनावरणीय कर्म के उदय से छमस्थ जीव निद्रा लेता है और वह खड़े २ भी निद्रा लेता है, दर्शनावरणीय कर्म केवली भगवान् के है नहीं वह उनके बिलकुल नष्ट हो गया है इसलिये न उन में निद्रा है और न प्रचला है इत्यादिरूप से और समस्त कथन पहिले की तरह सेही जानना પન્તના વિષયમાં સમજવું. બહુવચનવાળા સૂત્રોમાં જીવ અને એકેન્દ્રિયને છેડી દઇને ત્રણ ભૃગ સમજવા.
( छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से निद्दाएज्ज वा पयलाएज्ज वा ? ) हे महन्त ! શું છદ્મસ્થ મનુષ્ય નિદ્રા લે છે? તથા શું તે ઉભા પણ નિદ્રા લે છે ? ( हंता गोयमा ! निहाएज्ज वा, पयढाएज्ज वा जहा हसेज्जवा तहाणवरं दरिस - णावरणिजस्स कम्मस्स उदएणं निहायंति वा पचलायंति वा ते णं केवलिस्स नत्थि - अनंत चेव) हां, गौतम ! ते निद्रा से छे तथा ते उला उला पशु निद्रा से छे. भे રીતે છાસ્ય મનુષ્ય અને કેવલી ભગવાનના હાસ્ય અને ઉત્કંઠા વિષેના પ્રશ્નોતરા પહેલાં આપવામાં આવ્યા છે, એજ પ્રમાણે તે બન્નેના નિદ્રાના વિષયમાં પણ પ્રશ્નોત્તરા સમજી લેવા. તેમાં ફકત એટલી વિશેષતા ધ્યાનમાં રાખવી છદ્મસ્થ જીવ દશનાવરણીય કર્મીના ઉદયના લીધે નિદ્રા લેતા હોય છે, પશુ કેવલી ભગવાનના દનાવરણીય કર્માંના બિલકુલ ક્ષય થઈ ગયેલે હાય છે તે કારણે તેમનામાં નિદ્રા કે પ્રચલાના અન્તર્ભાવ હાય છે. બીજુ સમસ્ત
श्री भगवती सूत्र : ४