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________________ १९२ भगवतीसूत्रे शब्दान , खरमुहीसहाणि वा. खरमुखीशब्दान् वा, काहलापद वाच्यो वाधविशेष खर मुखी, तस्याः शब्दान् वा, 'पोयासद्दाणि वा' पोताशब्दान् वा, महती काइला पोता तस्याः शब्दान वा, 'परिपरिया सद्दाणि वा' परिपरिता शब्दान् जब संबंध होता है तब उससे "धिक धिक् " ऐसा शब्द निकलता है, तथा दण्ड आदि के साथ ढोल आदि का जब संयोग होता है तब उस से 'धम धम' ऐसा शब्द होता है-यही बात “ आकुटयमानान् शब्दान् शृणोति " इस पद द्वारा प्रकट की गई है । 'तं जहा' इसो शंकास्पदविषय को आगे के पदों द्वारा गौतम कह रहे हैं " संखसहाणि वा" मुख पर लगाकर जय शंख उसकी वायु से पूरित होता हैतब उससे जो ध्वनि निकलती है उसका नाम शंख शब्द है। 'सिंगसहाणिय वा' मृगादि की सींग को जब जोरसे मुख वायु द्वारा पूरित कर दिया जाता है-तब उससे जो शब्द निकलती है वह शृंग शब्द है। बजाने वाले लोग पहिले इसमें छिद्र कर लेते हैं और फिर इसे षजाते हैं । 'संखियसहोणि वा' जैसा बड़ा शंख होता है उसी प्रकार का छोटा सा भी शंख होता है। यह बजाया जाता है। बजने पर जो ध्वनि निकलती है वह शंखिका शब्द है। 'खरमुहीसद्दाणि वा' खरमुही नाम काहल का है। यह एक प्रकार का बाजा होता है। इसका शब्द का नाम खरमुखी शब्द है। 'पोयासहाणि वा' बडी जो काहला होती है वही पोता कहलाती है। इसके शब्दों का नाम-ध्वनि का नाम ભરવાથી વનિ નીકળે છે. તબલા પર હાથ પછાડવાથી વનિ નીકળે છે. જુદાં જુદાં વાજિંત્રોમાંથી જુદા જુદા પ્રકારને વનિ નીકળે છે. જેમ કે ઢેલ ५२ in Aथी "मयम" अवा नीचे छ. मे पात ( आकुटयमान शब्दान् शृणोति) ५४ द्वारा २५ष्ट ४२वामां मावस ठे-“तजहा" मा ५६ द्वारा tais पत्रिोन पनिन नाम मायामा मायां छ (संखसहाणि જા) મુખવડે શંખને ફૂંક મારવાથી જે વનિ નીકળે છે તેને શંખનાદ કહે छ. (सिंगसदाणि वा) भृ॥हिना शिमा न्यारे भुभव रथी वा भरवामां आवे छे, त्यारे तेभाथी भवानी ने छे. ते "शिना" . તેને વગાડનારા લેકે પહેલાં તેમાં છિદ્ર પાડી દે છે અને પછી તેને વાજિંત્ર तरी रुपये ४२ छ. (संखियसहाणि वा ) नाना शमने 43वाथी । नाणे छ तेन “ शमिश५४" डेछ. (खरमुहीसहाणि वा) ५२मुभी नामना श्री भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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