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________________ भगवतीसूत्रे विटंति' आनुपूर्वीग्रथितानि यावत्-तिष्ठन्ति, अतीतानि वर्तमानभवान्तानि-अन्य भविकमन्यभविकेन संबद्धमित्येवं सर्वाणि एकस्य जीवस्यायूंषि अन्योन्यं प्रतिब. द्धानि भवन्ति न तु एकभवे एव बहूनि आयूंषि एकस्य जीवस्य इत्याशयः, अतएव 'एगेवियणंजीवे' एकोऽपि च खलु जीवः, 'एकेन समयेन एककालावच्छेदेन 'एगं आउयं पडिसंवेदेह' एकम् आयुष्कं प्रतिसंवेदयति, नतु द्वे आयुषी, बहूनि वा आयूंषि -इति, तदेवाह-'तं जहा इहभवियाउयं वा तद्यथा इहभाविकायुष्कं वर्तमानभवायुर्वा 'परमवियाउयंवा' परभविकायुष्कं वा, तथा च परभवभोगयोग्यं यद् वर्तमान भवे प्रतिबद्धं तच्च परभवे गतः सन् प्रतिसंवेदयति, तदेव परभवायुष्कमिति व्यपदिश्यते तदेव विशदति- 'जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ ' यं समयं प्रत्येक भव की आयु के साथ अर्थात् भूतकाल के समस्त भवों की आयुएँ अभीतक के वर्तमान भवकी आयु के साथ-सांकल की कड़ियों की तरह संपद्धित हैं । ऐसा नहीं है कि एक जीव के एक भव के साथ ही पहिले भक्तों की सब आयुएँ संबद्धित हो । इस लिये 'एगे विय णं जीवे' एक जीव 'एगे णं समएणं' एक समय में 'एगं आउयं' एक ही आयु को 'पडिसंवेदेइ' भोगता है। दो आयुओं को अथवा बहुत आयुओं को नहीं भोगता है । 'तं जहा इहभवियाउयं वा परभवियाउयं वा' एक समय में जीव या तो वर्तमानभव सम्बन्धी आयु को भोगता है या परभवसम्बन्धी आयु को भोगता है " परभव संब धी आयु को भोगता है " इसका भाव यह है कि परभव में भोगने योग्य आयु जिसे वर्तमान भव में जीव ने बांध लिया है उसे परभव में जाकर वह भोगता है 'जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेह' સાથે એટલેકે ભૂતકાળના સમસ્ત ભવોનાં આયુઓ અત્યાર સુધીના વર્તમાન ભવના આયની સાથે-સાંકળનિ કડીઓની જેમ સંબદ્ધિત છે. એવું નથી કે એક જીવના એક ભવની સાથે જ પહેલાં ભવના બધાં આયુઓ સંબદ્ધિત डायतथी “एगे वि य ण जीवे " मे ३ ( एगेणं समएणं ) मे सभये ( एग आउय) मायुनु ( पडिसंवेदेइ ) वहन ४२ छभायमान पधारे मायुसन वन ४२ते नथी. “ तजहा इहभवियाउय वा, परंभवियाउय) मे समय मे १ तमा म समधी ( वर्तमान ભવના ) આયુને ભેગવે છે, અથવાત પરભવ સંબંધી આયુને ભેગવે છે આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે પરભવમાં ભેગવવા ગ્ય આયુ કે જેને બધ વર્તમાન ભવમાં બાંધ્યો છે, તેને જીવ પરભવમાં જઈએ ભગવે છે. "जं समय इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, नो त समय परभवियाउयं पडिसवेरेड) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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