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________________ 6 प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०३ सू० १ अन्यतीर्थिक मिध्यात्वनिरूपणम् १६५ मनघडत्ताए चिss ' यावत् - अन्योन्यघटतया यथा शृङ्खला परस्परसमुदायरूपतया तिष्ठति यावत्करणात् -" आनुपूर्वीग्रथिता, अनन्तरग्रथिता, परंपर प्रथिता, अन्योन्यग्रथिता, अन्योन्यगुरुकतया अन्योन्यभारिकतया, अन्योन्य गुरुकसंभारिकतया ' इति संग्राह्यम् । दाष्टन्तिके योजयति-' एवामेव ' एवमेव लावदेव ' एगमेगस्स जीवस्स एकैकस्य जीवस्य न तु अन्यतोर्थिकाभिमतानां बहूनां जीवानाम् ' बहूहिं आजाइ सहस्सेहि' बहुभि आजातिसहस्र अनेकप्रकारेषु आजातिसहस्रेषु अतीतकालिकेषु देवादिजन्मसु तत्कालापेक्षया सत्सु क्रमप्रवृतेषु 'बहू' आउयसहस्सा ' ' बहूनि आयुष्कसहस्राणि 'आणुपुत्रि गढ़ियाई जावमन घडत्त चिट्ठ' तो जैसे वह श्रृंखला यावत् परस्पर में समुदाय रूप से रहती है' एवामेव ' तो इसी श्रृंखला के अनुसार ' एगमेगरस जीवस्स' अन्यतीर्थिक जनों द्वारा मान्य अनेक जीवों के नहीं, किन्तु एक एक जीव के ' आजाइसहस्सेहिं ' अनेक प्रकार के देवादिक भव के साथ जो कि भूतकाल में हो चुके हैं और क्रम २ से ही जो हुए हैं तथा जो अपने काल की अपेक्षा अस्तित्व विशिष्ट थे 'बहूहि आउयसहस्साइं ' अनेक हजार आयुएँ आणुपुर्विध गढ़ियाई जाव चिति ' आनुपूर्वीरूप से प्रथित-प्रतिबद्ध हैं । तात्पर्य कहने का यह है कि एक जीव के वर्तमान भव से लगाकर भूतकाल में जितने भी भव हो चुके हैं उन सब भव की आयुएँ परस्पर में एक भव की आयु से दूसरे भव की आयु, दूसरे भव की आयु से तीसरे भव की आयु इत्यादि क्रम से प्रत्येक जीव के विवक्षित थयो छे ) ( जाव अन्नमन्नघडत्ताए चिठ्ठइ ) ते सांज नेवी रीते ( यावत् ) परस्परमां समुहाय३ये रहेली होय छे, ( एवामेव ) ते सांडजनी प्रेम ( एगमेगस जीवरस ) प्रत्येउ लवना ( अन्य तीर्थ अनी मान्यता अनुसार मने लवोना नहीं ) ( आजाइसहस्से हि ) भने डलर भवानी साथै ( અનેક પ્રકારના દેવાર્દિક ભવાની સાથે કે જે ભૂતકાળમાં થઈ ચૂકયા છે, અને ક્રમશઃ જ જે થયા છે, અને જે તેમના કાળની અપેક્ષાએ અસ્તિત્વ विशिष्ट हुता ) ( बहूहि आउयसहस्साई ) भने हुन्नर आायुगो आणुपुत्रि गढ़ियाई जाव चिदुति " આનુ પૂર્વી રૂપે ગ્રથિત પ્રતિખદ્ધ છે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-એક જીવના વમાનથી લઈને ભૂતકાળમાં જેટલા ભવેા થઇ ચૂકયા છે, એ સઘળા ભવાના આયુષ્ય પરસ્પરમાં-એક ભત્રના આયુ સાથે બીજા ભવનું આયુ, ખીજા ભવના આયુ સાથે ત્રીજા ભવનું આયુ ઇત્યાદિ ક્રમે- પ્રત્યેક જીવના પ્રત્યેક ભવના આયુની "" श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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