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भगवतीसूत्र महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूति म अनगारः, गौतमगोत्रो यावत्-एवम् अवादीत्-जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सूर्या उदीचीन-प्राचीनम् उद्गत्य, प्राचीन दक्षिणम् आगच्छतः, प्राचीन-दक्षिणम् उद्गत्य दक्षिण-प्रतीचीनम् आगच्छतः, दक्षिण प्रतीचीनम् उद्गत्य प्रतीचीन-उदीचीनम् आगच्छतः, प्रतीचीन-उदीचोनम् उद्गत्य उदीची-प्राचीनम् आगच्छतः ? हन्त, गौतम! जम्बूद्वीपे द्वीपे सूर्ण उदीची-भाचीनम् उद्गत्य यावत्-उदीची-प्राचीनम् आगच्छतः ॥सू०१॥ महावीर के (जेटे अंतवासी इंदभूईणामं अणगारे गोयमगोत्ते णं जाव ए. वं वयासी) ज्येष्ठ अंतेवासी-शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार ने जो गौतम गोत्र के थे, यावत् इस प्रकार से पूछा-(जंबुद्दीवे ण भंते ! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिण-मागच्छंति, पाईण-दाहिण मुग्गच्छ दाहिण-पडीणमाग्गच्छंति ) हे भदन्त ! जंबूद्वीप नाम के द्वीप में दो सूर्य हैं । वे ईशान दिकोण में उदय होकर आग्नेयदिक्कोण में अस्त होते हैं-अथवा अग्निदिकोण में उदयहोकर नैऋतदिशा में अस्त होते है ? (दाहि ण-पडीणमुग्गच्छ पडीण उहणमागच्छंति) या नैऋत्यकोण में उदय होकर, वायव्य कोने में अस्त होते हैं ? (पडीण उदीण मुग्गच्छ उदीचि पाहणमागच्छंति ) अथवा वायव्यकोण में उदय होकर ईशान कोण में अस्त होते हैं ? (हंता गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीची पाईण मुग्गच्छ जाव उदीचपाईणमागच्छंति ) हां गौतम ! इसी तरह से सूर्यो का उदय होना और अस्त होना होता रहता है जंबूद्वीप नामके (जेटे अंतेवासी इंदभूई नामं अणग.रे गोयमगोत्तणं जाव एवं वयासी) ये०४ मतवासी (શિષ્ય) ઈન્દ્રભૂતિ નામના અણુગાર હતા. તેઓ ગૌતમ ગોત્રના હતા. “યાવત तभये भावीर प्रभुने मी प्रमाणे पूछ्युं-(जंबुहोवे णे भंते ! दीवे सूरिया उदीण पाईणमुग्गच्छ पाईण दाहिणमागच्छंति, दाहिण-पाईणमुगच्छ दाहिण-पडीणमाग पति) महन्त ! मूद्वीप नामना द्वीपमा यो सूर्य छे. तसा शानभा ઉદય પામીને અગ્નીકેણમાં અસ્ત પામે છે? અથવા અગ્નિકેણુમાં ઉદય પામી नैऋत्य शुभा मत पामे छ १ ( दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीण-उइणमागच्छंति) अथवा नेत्रत्य म य ाभीन कायम अस्त पामे छ१ ( पडीण -उदीणमुग्गच्छ उदीचि पाइणमागच्छंति ) Aथा वायव्यमा ५ पाभीन
शान आमा मस्त पा छ, (हंता गोयमा ! जंबुद्दीवेणं दीवेसुरिया उदीची पाईणमुग्गच्छ जाव उदीचपाईणमागच्छंति ) , गौतम ! २५ प्रभारी सूयाना
श्री. भगवती सूत्र:४