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________________ १९४ भगवतीले भगवान् आह-' णो इणढे समझे' नायमर्थः समर्थः, नैतत्सम्भवति । गौत. मस्तत्र कारणं पृच्छति-' से केणडेणं भंते !' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन एवं धुच्चइ ' एवम्-'नैतत्संभवति' इति उच्यते ? भगवत उक्तनिषेधस्वरूपमेव स्फुटतया अनुवदति-'जयाणं दीबिच्चया' इत्यादि । यदा खलु द्वैप्याः 'ईसिं. पुरे वाया• ' ईषत्पुरोवातादयो वान्ति ‘णोणं तया' नो खलु तदा 'सामुद्दया' सामुद्रिकाः 'ईसिंपुरे वाया ' ईषत्पुरोवातादयो वान्ति, एवं 'जयाण' यदा स्खलु ' सामुद्दया ' सामुद्रिकाः 'ईसिंपुरे वाया०' ईषत्पुरोवातादयो वान्ति, जो गं तया' नो खल्लु तदा 'दीविच्चया' द्वैप्याः ' ईसिंपुरे वाया०' ईषत्पुरो वातादयो वातुमर्हन्ति, ? इति गौतमस्य प्रश्नः । भगवान् तत्र हेतुं प्रतिपादयति'गोयमा ! तेसिणं' इत्यादि । हे गौतम ! तेषां खलु पूर्वोक्तानाम् ‘वायाणं' गतानाम् ' अचमनवि वच्चासेणं' अन्योन्यव्यत्यासेन परस्परविपर्ययरूपविईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं (तया ण) तब क्या ( दीविच्चया वि ईसिंपुरे वाया०) द्वीपसंबंधी भी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते हैं (जो इणढे सम?) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् ऐसी बात संभवित नहीं होतीहै। इस विषय में कारण जानने की इच्छा से गौतम प्रभु से पूछते हैं कि (से केणद्वेणं भंते ! एवं धुच्चइ ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जब द्वीपसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं, तब समुद्रसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु नहीं चलते हैं, और जब समुद्र संबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं, तब द्वीपसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु नहीं चलते हैं । गौतमस्वामीके इसप्रश्नके समाधान निमित्त कारण प्रकट करते हुए प्रभु उनसे कहते हैं कि-(गोयमा ! तेसिंणं वायाणं अन्नमन्नविवच्चासेणं लवणे समुद्दे वेलं नाइक्कमइ-से तेण?णं जाव वाया वायंति) उत्तर-" णो इणट्रे समटू" 3 गौतम ! म मर्थ समय नथी. सटसे કે એવી વાત સંભવી શકતા નથી. હવે તેનું કારણ જાણવા માટે ગૌતમસ્વામી नीचे प्रमाणे प्रश्न पूछे छे-" से केणद्वेण भते एवं वुच्चई" त्यादि महन्त ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે જ્યારે જમ્બુદ્વીપના ઈષત્પરોવાત આદિ વાયુઓ વાતા હોય છે, ત્યારે સમુદ્રના ઈષપુરવાત આદિવાયુઓ વાતા નથી. અને જ્યારે સમુદ્રના ઈષપુરે વાત આદિ વાયુ વાતા હોય છે ત્યારે જંબુદ્વીપના ઈષપુરવાત આદિવાયુઓ વાતા નથી? ગૌતમસ્વામીના તે પ્રશ્નનું મહાવીરપ્રભુ આ પ્રમાણે સમાधान रेछ-"गोयमा!" गौतम ! "तेसिण वायाण अन्नमन्नविवच्चासेण लवणे समुद्दे वेलं नाइक्कमइ-से तेणतुण जाव वाया वायति" ते वायुमान। ५२२५२ श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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