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________________ १०४ भगवतीसूत्रे वाताः ? हन्त, अस्ति । अस्ति खलु भदन्त ! सामुद्रिकाः ईषत्पुरोवाताः० ! हन्त, अस्ति । यदा खलु भदन्त ! द्वैप्याः ईषत्पुरो वाताः० तदा सामुद्रिकाः अपि ईपरपुगेवाताः० ? यदा खलु सामुद्रिकाः ईषत्पुरोवाताः० तदा द्वैप्या अपि ईषत्पुरोवाताः० ?। नायमर्थः समर्थः । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवम् उच्यते -यदा द्वैप्याः ईषत्पुरोवाताः० नो तदा सामुद्रिकाः ईषत्पुरोवाता: यदा सामु. द्रिकाः ईषत्पुरोवाताः० नो तदा द्वैप्याः ईषत्पुरोवाताः० ? गौतम ! तेषां वाताहे भदन्त ! ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ द्वीप में हैं ? (हंता, अस्थि) हां गौतम ! ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ द्वीप में भी हैं । (अस्थि ण भंते ! सामुद्दगा ईसिंपुरे वाया० ) हे भदन्त ! ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ समुद्र में हैं ? (हंता, हस्थि ) हां, गौतम ! ईषत्पुरोवात आदि समुद्र में भी हैं । ( जया णं भंते दीविच्चया ईसिंपुरे वाया ०, तया णं सामुद्दया विईसिंपुरे वाया ०, जयाणं सामुद्दया ईसिंपुरेवाया०, तयाणं दीविच्चया ईसिं पुरे वाया०) हे भदन्त ! जिस समय द्वीप संबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ चलती हैं उस समय समुद्र संबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ च. लती हैं क्या? और जिस समय समुद्र संबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु एं चलती हैं, उस समय द्वीप सम्बन्धी ईषत्पुरोवात आदि वायुएँ चलते हैं क्या ? (णो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ, जया णं दीविच्चया ईसिंपुरे वाया० णो णं तया सामुद्दया ईसिंपुरे वाया, जयाणं सामुद्दया ईसिंपुरेवाया णो णं (अस्थिण भंते ! दीविच्चगा ईसिंपुरेवाया.) महन्त ! द्वीपमा पत्. शपात मा वायु डाय छ १२ ? (हता, अस्थि ) , गौतम ! ते वायुमे। द्वीपभा ५९ हाय छे. ( अत्थिण भंते ! सामुहगा ईसिंपुरवाया ? ) 3 महन्त ! समुद्रमा षत्पुरोवात माहि पायुसे। डाय छ ? ५२i ? (हता अस्थि ) डो' गीतम! समुद्रमा पर ते वायुमा डाय छे. (जयाण भंते ! दीविच्चया ईसिं पुरेवाया. तयाण सामुहया वि ईसिं पुरेवाया. जयाण सामुद्दया ईसिंपुरे वाया. तयाण दीविच्चया वि ईसिंपुरे वाया. १) महन्त ! न्यारे दीपना ध्यत्पुरोपात माह વાયુઓ જ વાતા હોય છે, ત્યારે શું સમુદ્રમાં પણ ઈષપુરાવાત આદિ વાયુએજ વાતા હોય છે? અને જ્યારે સમુદ્રમાં ઈષપુરોવાત આદિ વાયુ વાતા હોય છે, ત્યારે શું દ્વીપમાં પણ ઈષપુરવાત આદિ વાયુઓ જ વાતા હોય છે? (गोयमा ! णो इणद्वै समढे) गौतम ! मेवं मनतुं नथी. ( से केणडेण भते! एवं वुच्चइ, जयाणं दीविच्चया ईसिंपरेवाया, णो ण तया सामुद्दया ईसिंपुरे. वाया, जयाण सामुदयो ईसिंपुरे वाया णो ण तया दीविच्चया ईसिंपुरे वाया।) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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