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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीकाश०६ उ०५ २०३ कृष्णराजीस्वरूपनिरूपणम् ११०३ परिक्षोभहेतुत्वात् 'देवपरिक्षोभा ' इति नाम ८, इत्यष्टौ नामानि भवन्ति । गौतमः पृच्छति-' कण्हराईओ णं भंते ! किं पुढवीपरिणामाओ, आउपरिणामाओ, जीव परिणामाओ, पोग्गलपरिणामाओ?' हे भदन्त ! कृष्णराजयः खलु किम् पृथिवीपरिणामाः ? अथवा अप्परिणामाः ? जलपरिणामाः ? उताहो जीवपरिणामाः ? अथवा पुद्गलपरिणामाः भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! पुढवीपरिणामाओ, है। गौतम ! कृष्णराजयः पृथिवीपरिणामाः सन्ति, एवम् 'जीवपरिणामाओ वि' जीवपरिणामाः अपि सन्ति, तथा ' पोग्गलपरिणामाओ वि, पुद्गलपरिणामाः अपि सन्ति, किन्तु ' णो आउपरिणामाओ' नो अप्परिणामाः कृष्णराजयो भवन्ति । गौतमः पृच्छति-' कण्हराईसु णं भंते ! सव्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता उववष्णपुव्वा ! ' हे भदन्त ! कृष्णराजिषु सर्वे पाणाः, भूताः, जीवाः, सत्त्वाः, किम् अब गौतमस्वामी पूछते हैं कि-(कण्हराईओ णं भंते ! किं पुढवी परिणामाओ, आउपरिणामाओ, जीवपरिणामाओ, पोग्गलपरिणामाओ) हे भदन्त ! ये कृष्णराजियां किस के परिणामरूप हैं-क्या पृथिवी के ये परिणामरूप हैं ? या जलके परिणामरूप हैं ? या जीव के परिणामरूप हैं ? या पुद्गल के परिणामरूप हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं(गोयमा) हे गौतम ! (पुदविपरिणामाओ) ये कृष्णराजियां पृथिवी के परिणामरूप हैं, (जीवपरिणामाओ वि) जीव के परिणामरूप भी हैं। तथा (पोग्गलपरिणामाओ वि) पुद्गल के परिणामरूप भी हैं। परन्तु ये कृष्णराजियां (णो आउपरिणामाओ) जलके परिणामरूप नहीं हैं। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि-(कण्हराईसु णं भंते ! सम्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता, उववण्णपुव्वा ) हे भदन्त ! इन कृष्णराजियां व गौतम स्वामी महावीर प्रमुने यो प्रश्न ४२ छे है ( कण्डराई ओण' भंते ! किं पुढवी परिणामा ओ, आउ परिणामाओ, जीव परिणामाओ, पोग्गल परिणामाओ १) महन्त ! शुसि ना परिणाम ३५ छ- तेमा પૃથ્વીના પરિણામ રૂપ છે? કે જળના પરિણામ રૂપ છે? કે જીવના પરિણામ રૂપ છે? કે પુલના પરિણામ રૂપ છે? तना उत्तर मापता महावीर प्रभु गौतम स्वामीने ४ छ है ( गोयमा ! उ गौतम ! ( पुढवि परिणामाओ) ते ४० पृथ्वीना परिणाम ३५ छ, (जीव परिणामाओ वि ) वन परिणाम ३५ छ, (पोग्गलपरिणामाओ वि) मन पुरखना परिणाम ३५ ५५ छ, ५२न्तु तेग (आउ परिणामाओ) જળના પરિણામ રૂપ નથી. डवे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे , (कण्हराई सुण श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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