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________________ ११०२ भगवतीस्त्र माघवती इति वा, अत्यन्तान्धकारातत्वात् सप्तमनारकपृथिवीसशत्वातू ' माघवती' इति नाम ४, वातपरिघा इति वा, वात्यावत् अन्धकारमयत्वात् दुले. ध्यत्वाच्च ‘वातपरिघा' इति नाम ५, पातपरिक्षोभा इति वा, वात्यावदेवान्ध. कारातत्वात् परिक्षोभहेतुत्वाच्च वातपरिक्षोभा इति नाम६, 'देवपरिघा' इति वा, देवानाम् अर्गलेच दुर्लध्यत्वात् 'देवपरिघा' इति नाम७,देवपरिक्षोभा इति वा देवानां ऐसा है । (मघा) यह छठवें नरक का नाम है । (माधवी ) यह सप्तम नरक का नाम है-सो सप्तम नरक जैसा गाढ अंधकार से आवृत रहता है उसी प्रकार ये कृष्णराजियां भी अत्यन्त-गाढ-अन्धकार से आवृत रहती हैं अतः इनका चौथा नाम (माधवईइ वा) ऐसा है। (वायफलिहाइ वा) जैसे वधूरा ( आंधी) अन्धकारमय होता है और दुर्लध्य होता हैउसी प्रकार से ये कृष्णराजियां भी हैं-अतः उसके सादृश्य से इनका भी पांचवां नाम (वातपरिघा) ऐसा है । (वायपलिक्खोभाइ वा) तथा वात्या-वधूरे की तरह ही अन्धकार से आवृत होने के कारण और परिक्षोभ की हेतुभूत होने के कारण इनका ६ वां नाम (वातपरिक्षोभा) ऐसा है । ( देवफलिहाइ वा) देवों के लिये ये अर्गला की तरह दुर्लद्धय होती हैं-इस कारण इनका ७ वां नाम देव परिघा ऐसा है । (देवपलिक्खोभाइ वा ) देवों के लिये परिक्षोभ की कारण होने से इनका ८ वां नाम (देवपरिक्षोभा) ऐसा है । इस तरह ये इनके आठ सार्थक नाम हैं। (भा) छे. (४) ( माधवी ) ॥ सातमी न२४नु नाम छ. म सातमी નરક અતિશય ગાઢ અંધકારથી છવાયેલી છે, તેમ આ કૃષ્ણરાજિઓ પણ ગાઢ माथी मा२४ाहित डाय छ, तथी तेनु याथु नाम (माघवईइ वा ) 'भाषा' छ. (५) ( वायफलिहाइ वा) वी शते १५। (बाजियो ) मारमय અનેદુર્લધ્ય (જેને પાર જવું મુશ્કેલ થઈ પડે એ) હોય છે, તેમ કૃષ્ણરાજિઓ પણ અંધકારમય અને દુલધ્ય હોય છે. તે કારણે તેમનું પાંચમું નામ " पातप२ि" छे. (6) (वायपलिक्खोभाइ वा) तथा १५२रानी म अध. કારથી વીંટળાયેલ હોવાને કારણે પરિક્ષોભની જનક હોવાને લીધે તેમને " पातपरिक्षामा" ५] ४ छ. ( देवफलिहाइ वा) ते देवाने भाट Anal नी म दुव्य डावाने ४।२0 तेनु सातभु नाम " हेवरिया" छ. (८) (देवपलिक्खोभाइ वा) हेवामा ५ परिक्षोभ उत्पन्न ३२नारी पाथी तेनु' આઠમું નામ “દેવ પરિભા ” છે. આ રીતે તેના આઠ સાર્થક (म प्रमाण )नाम छे. श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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