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भगवती सूत्रे
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वा तमस्कायः ? इति प्रश्नः । भगवानाह - ' गोयमा ! णो पुढविपरिणामे, आउपरिणामेव, जीवपरिणामे वि, पोग्गलपरिणामे वि, हे गौतम! तमस्कायः नो पृथिवीपरिणामः, तस्य सर्वया अन्धकारमयत्वात्, अपितु अप्परिणामोऽपि तस्यापुस्वरूपत्वात् जीवपरिणामोऽपि अपां जीवरूपत्वात् पुद्गलपरिणामो ऽपि तमसः पुद्गलरूपत्वात् । गौतमः पृच्छति - 'तमुक्काए णं भते ! सव्वे पाणा भूया, जीवा, सत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव - तसकाइयत्ताए उववन्नपुच्चा ? ' हे प्रभु उनसे कहते हैं कि - ( गोयमा) हे गौतम! ( णो पुढवि परिणामे, अउपरिणामे वि, जीवपरिणामे वि, पोग्गलपरिणामे वि) तमस्काय पृथिवी का परिणाम - विकार नहीं है । किन्तु यह अष्काय का भी परिणाम है, जीव का भी परिणाम है और पुद्गल का भी परिणाम है । पृथिवी का परिणाम यह इसलिये नहीं है कि यह सर्वथा अंधकार रूप है । जलका परिणाम इसे इसलिये कहा गया है कि यह जलरूप होता है और जीव का परिणाम इसलिये इसे कहा गया है कि जल स्वयं जीव रूप है, तथा पुद्गल का परिणाम कहने का कारण यह है कि तमस्काय स्वयं पुद्गलरूप है । अब गौतम प्रभु से यों पूछते हैं कि (तमुक्काए णं भंते! सव्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता पुढवीकाइपत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववन्नपुत्र्वा ) हे भदन्त ! समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव, समस्त सत्व क्या तमस्काय में पहिले पृथिवीकायिकरूपसे यावत्
तेन। उत्तर आयता भडावीर प्रभु उडे छे - ( गोयमा ! णो पुढविपरिणामे, आउपरिणामेत्रि, जीवपरिणामे वि, पोगलपरिणामे वि) हे गौतम ! तभराय पृथ्वीना परिणाम (विहार) ३५ नथी, पाशु ते अजनु ( अपूजयतु ) परि ણામ પણ છે, જીવનું પરિણામ પણ છે અને પુદ્ગલનું પરિણામ પણ છે. તે સર્વથા અંધકાર રૂપ હાવાથી તેને પૃથ્વીનું પરિણામ જળના પરિણામ રૂપ કહેવાનું કારણ એ છે કે તે જળરૂપ જીવના પરિણામ રૂપ કહેવાનુ કારણ એ છે કે જળ છે, તથા તેને પુદ્ગલના પિરણામ રૂપ કહેવાનું કારણ પેાતે જ પુદ્ગલરૂપ છે.
કહ્યું નથી. તેને
હાય છે. તેને
પેાતે જ
જીવરૂપ હાય
એ છે
श्री भगवती सूत्र : ४
કે તમસ્કાય
गौतम स्वाभी हुवे सेवा प्रश्न पूछे छे - ( तमुक्कए णं भते ! सव्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाब तसकाइयत्ताए उत्रवन्नपुत्रा ? ) હું બદન્ત ! સમસ્ત પ્રાણુ, સમસ્ત જીત્ર, સમસ્ત ભૂત અને સમસ્ત સત્ત્વ શું