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________________ १०७२ मगवतीस्त्र भासः कृष्णकान्तियुक्त इति, तथा च वर्णेन कालः, कालावभासश्च तमस्कायः, अथवा अतिशयकृष्णकान्तिश्च स इति । तथा स गम्भीर-रोम-हर्षजननः, गम्भीरश्वासौ अत्यन्तभीषणत्वाद् रोमहर्षजननश्चेति गम्भीररोमहर्षजननः रोमाञ्चोत्पा. दकः । तस्य रोमहर्षजनने कारणमाह-'भीमः' इति, बिभेति अस्मादिति भीमः भयङ्करः, तथा उत्त्रासनकः अत्यन्तत्रासजनकः परमकृष्ण पर्णः स तमस्कायः प्रज्ञप्तः। 'देवे णं अत्थेगइए जे णं तप्पढमयाए पासित्ता णं खुभाएज्जा' हे गौतम ! देवः खलु अस्त्येककः, यः खलु तं तमस्कायं प्रथमतया प्रथमवारं दृष्ट्वा अवलोक्यैव क्षुभ्येत् क्षोभं प्राप्नुयात् । ' अहे णं अभिसमागच्छेज्जा' अथ अनन्तरं खलु अभिसमागइतना भयंकर है कि देखते ही बहुत बुरी तरह से रोमराजि खड़ी हो जाती है। रोमराजि खड़ी होने का कारण यही है कि वह "भीमः" भयप्रद है। अत्यन्त त्रास जनक है। ऐसे परमकृष्ण वर्णवाला वह तमस्काय है। (कालोभासे ) ऐसा जो पद दिया गया है वह यह प्रकट करता है कि कोई पदार्थ काला होकर भी किसी कारण वश काले रूप में अवभासित नहीं होता है परन्तु यह ऐसा नहीं है-यह तो कृष्णव. र्णवाला होकर भी काले ही रूप से अवभासित होता है । अथवा ( कालोभासे ) यह तमस्काय अत्यन्तकृष्णकान्ति से युक्त है। मनुष्यादि जिससे डरें वह (भीम) है। (देवेणं अत्थेगइए जे णं तप्पढमयाए पासित्ता णं खुभाएजा) कोइ एक देव ऐसा भी होता है जो उस तमस्काय को सर्वप्रथम देख करके ही क्षुभित हो जाता है-यदि कोई देव कदाचित् उस तमस्काय में (अभिसमागच्छेन्जा) पास में जाकर प्रवेश બધે ભયંકર હોય છે કે તેને જોતાં જ બીકને કારણે રૂવાડા ઊભા થઈ तय छ ३वा मा थार्नु १२९४ छे ते “ भीमः " in छअत्यन्त त्रासन छ, मा ५२मकृष्ण- पाते तम२४य छे. “ कालाभासे " । ५६ मा५पार्नु ४।२७ से छे । पाथ आणे डावा छतi પણ કઈ કારણે કાળે અવભાસિત થતું નથી–દેખાતો નથી. પરંતુ તમસ્કાય એ નથી. તે તે કૃષ્ણ વર્ણવાળે છે એટલું જ નહીં પણ કાળો જ દેખાય छ. मथवा “ कालोभासे” तमाय अत्यन्त ४०९५४ान्तिथी युत छ समसामाथी रे तर " भीम" / छे. ( देवेणं अत्थेगहए जे णं तप्प. ढमयाए पासित्ताणं खुभाएजा ) तो तेने ५जी पा२ मतानी साथे । सास पाभी नय छे. हेव या२४ ते तभ३४ायमा “ अभिः समागच्छेज्जा " पासे ने प्रवेश ४२ छ, त त ( तओ पच्छा सीह सीह श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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