SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1064
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०५० 3 भगवतीस्त्र तमस्कायः खलु भदन्त ! किं पृथिवीपरिणामः, अप्परिणामः, जीवपरिणामः, पुद्गलपरिणामः, गौतम ! नो पृथिवीपरिणामः, अप्परिणामोऽपि, जीवपरिणामो ऽपि, पुद्गलपरिणामोऽपि । तमस्काये खलु भदन्त ! सब प्राणाः, भूताः, जीवाः, सत्वाः , पृथिवीकायिकतया यावत्-त्रसकायिकतया उपपन्नपूर्वाः ? हन्त, गौतम ! असकृत् , अथवा अनन्त कृत्वः, नो चैव खलु बाथरपृथिवी कायिकतया, बादराग्निकायिकतया वा " ॥ सू० १ ॥ पुढविपरिणाम आउपरिणामे जीवपरिणामे, पोग्गलपरिणामे ) हे भदन्त ! तमस्काय किसका परिणाम है ? क्या पृथिवी का परिणाम है ? या अप्पकाय का परिणाम है ? या जीव का परिणाम है ? कि पुद्गल का परिणाम है ? (गोयमा) हे गौतम! (जो पुढविपरिणामे, आउपरिणामे वि, जीवपरिणामे वि, पोग्गल परिणामे वि) तमस्काय पृथिवी का परिणाम नहीं है। वह अपकाय का भी परिणाम है जीव का भी परिणाम है तथा पुद्गल का भी परिणाम है । (तमुक्काएणं भंते ! सव्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता पुढवी काइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववन्नपुव्वा) हे भदन्त ! तमस्काय में समस्त प्राग, समस्तभूत, समस्त जीव समस्तसत्व पहिले क्या पृथिवी कायिकरूपसे यावत् त्रसकायिकरूप से उत्पन्न हो चुके हैं ? (हंता, गोयमा ! ) हां, गौतम ! (असई अदुवा अणंतक्खुत्तो णो चेव णं बादरपुढविकाइयत्ताए बादरअगणिकाइयत्ताए वा) हां गौतम ! अनेक बार अथवा-अनंतबार ये सब प्राणादि पहिले वहां पूर्वोक्त (तमुक्काए णं भंते ! किं पुंढवि परिणामे आउपरिणामे जीव परिणामे, पोग्गलपरिणामे ? ) 3 महन्त ! तम४य तुं परिणाम छ ? शु. पृथ्वीन પરિણામ છે? અપૂકાયનું પરિણામ છે? શું જીવનું પરિણામ છે? શું પંદલનું પરિણામ છે ? (गोयमा ! ) गौतम ! ( णो पुढवि परिणामे, आउ परिणामे वि, जीव परिणामे वि, पोग्गल परिणामे वि) तम२४य पृ यतुं पशिम नथी, તે અપૂકાયનું પણ પરિણામ છે, જીવનું પણ પરિણામ છે અને પુલનું પણ પરિણામ છે. (तमुक्काए णं भंते ! सव्वे पाणा, भूया, जीवा, सत्ता, पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववन्नपुवा ?) महन्त ! तमयमा सम२. प्राय, સમસ્ત ભૂત, સમસ્ત જીવ, અને સમસ્ત સત્ત્વ પહેલાં શું પૃથ્વીકાયથી લઈને ત્રસકાયિક પર્યન્તના રૂપે ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યાં છે ? (हता, गोयमा ! ) ७, गौतम ! ( असई अदुवा अणंतक्खुत्तो, णो चेव णं बादरपुढवि काइयत्ताए बादरअगणिकाइयत्ताए वा) ७, गौतम ! मने श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy