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________________ ९० भगवती सूत्रे यत्-इमे णं' अनेन पूर्वपक्षोक्तेन धातकीखण्डद्वीपशब्दसम्बलितेन 'अभिलावेणं' अभिलापेन 'सब्वे' सर्वे सूर्योद्गमनास्तगमनविषयकाः 'आलावगा भाणियन्या' आलापका भणितव्याः, गौतमः पुनः पृच्छति-'जयाणं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु 'धायइसंडे दीवे ' धातकीखण्डे द्वीपे 'दाहिणड़े दिवसे भव' दक्षिणार्धे दिवसो भवति 'तदाणं उत्तरड़े वि' तदा खलु उत्तराधेऽपि दिवसो भवति, अथ च ‘जयाणं यदा खलु 'उत्तरड़े वि ' उत्तरार्धेऽपि दिवसो भवति 'तयाणं ' तदाखलु 'धायइसंडे दीवे ' धातकिखण्डे द्वीपे 'मंदराणं पन्चयाणं' 'मन्दराणां पर्वतानाम् 'पुरथिमपच्चस्थिमेणं' पौरस्त्य-पश्चिमे खलु 'राई भवइ ? ' रात्रिर्भवति किम् ? भगवानाह–'हंता, गोयमा ! एवं चेव जाव-राई चाहिये । (नवरं ) परन्तु विशेषता इतनी ही है कि (इमेणं) पूर्वपक्षोक्त (धातकी खण्ड दीप ) इस शब्द से मिले हुए ( अभिलावेणं ) अभि लाप को लेकर ही (सव्वे आलावगा भाणियव्वा ) सूर्योदय संबंधी एवं अस्तसंबंधी समस्त अभिलाप यहां कहना चाहिये । अब गौतम प्रभु से पुनःपूछते हैं कि-(जया णं भंते !) हे भदन्त ! जब भायइसंडे दीवे) धातकी खण्ड द्वीप में (दाहिणड्डे दिवसे भवइ) दक्षिमार्ध में दिवस होता है (त्या णं उत्तरले वि) उस समय उत्तरार्ध में भी दिवस होता है । अथ च-(जया णं) जब (उत्तरड्डे वि दिवसे भवइ) उत्तरार्ध में भी दिवस होता है (तया णं) तब (धायइसंडे दीवे) धात की खंड द्वीप में (मंदाणं पव्वयाणं) मन्दरपर्वतों के (पुरथिमपच्चस्थिमेणं) पूर्व पश्चिमदिग्भाग में (राई भवइ) रात्रि होती है क्या? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि-(हंता गोयमा! एवं चेव पता मेटली । छे : (इमेण) मे मसापमा यi aqYसमुद्र २५४ मा छ या धातsla'sीप' शहना (अभिलावेणं) अभिसापने प्रयास शन (सब्वे आलावगा भाणियव्वा ) सूर्योदय अने सूर्यास्त सभी सवा सायाप કહેવા જોઈએ. प्रश्न-(जयाणभंते) 3 महन्त! यारे (धायइसंडे दीवे ) धाता दीपना दाहिणढे दिवसे भवइ) क्षिामा हिवस थाय छे, (तयाणं उत्तरड्ढे वि) त्यरे उत्तरार्धमा ५ हिस थाय छ ? मन " जयाणं" न्यारे " उत्तर डुढे वि दिवसे भवइ) तरामा हिस थाय छ (तयाण') त्यारे (धायइसंडे दीवे) घातीय द्वीपमा (मंदराण पव्वयाणं) भन्४२ पवताना (पुरथिमपच्चथिगण राई भवइ ?) पूर्व मने परियम लामा ५५ शु. रात्रि थाय छ १ श्री. भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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