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प्रमेयचन्द्रिका टीव श०५ १० १ सू०४ लषणसमुद्रवक्तव्यतानिरूपणम् ८९
पुनगौतमः पृच्छति-'धायइ संडेणं भंते ! दीवे' हे भदन्त ! धातकीखण्डे खलु हे भदन्त ! द्वीपे 'मूरिया' सूर्यो 'उदीचि-पाईण मुग्गच्छ०' उदीची-प्राचीनम् -तदुभयदिगन्तरालम् ईशानकोणम् उद्गत्य उदयं लब्ध्वा प्राचीन-दक्षिणम् आ ग्नेयकोणम् आगच्छतः अस्तं गच्छतः? एवंरीत्या जम्बूद्वीपोक्तः सर्वः पूर्वपक्षः स्वयमूहनीयः । भगवानाह-'जहेव जंबुद्दीवस्स बत्तव्बया भणिया तहेव धायइसंडस्स वि भाणियबा' यथैव यादृशी एव जम्बूद्वीपस्य वक्तव्यता भणिता, तथैव ताशी एव वक्तव्यता धातकिखण्डस्यापि भणितव्या, तथा च जम्बूद्वीपप्रकरणोक्तानुसारमेव धातकिखण्डद्वी पेऽपि सर्व विज्ञेयम् , किन्तु ' नवरं' विशेषः पुनरयमेव ___ अब गौतम प्रभु से पुनः पूछते हैं कि (धायइसंडे गं भंते ) हे भदन्त ! धातकी खंड (दीवे ) द्वीप में (सूरिया ) दो सूर्य ( उदीचिपाईणमुग्गच्छ० ) उदीचिप्राचीन दिशाओं के अन्तरालरूप ईशानकोण में उदय को प्राप्त होकर (प्राचीन दक्षिण दिशा के अन्तरालरूप आग्नेय कोण में अस्त होते है क्या ? इस तरह जंबूद्वीप के कथित पूर्वपक्ष की तरह यहां पर भी समस्त पूर्वपक्ष अपने आप उद्भावित कर लेना चाहिये इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (जहेव जंधुदीवस्स बत्तव्वया भणिया, तहेव धायइसंडस्स वि भाणियव्वा ) हे गौतम ! इस प्रश्न के उत्तर में जिस प्रकार से पहिले जंबूद्वीप की वक्तव्यता कही गई है उसी प्रकार से धातकी खण्ड की भी वक्तव्यता जाननी चाहिये । तथा च जंबूद्वीप के प्रकरण में जैसा कुछ कहा गया है, उसी के अनुसार धातकी खण्ड द्वीप में भी सब कुछ कथन जानना
હવે ધાતકીખંડના વિષયમાં એવા જ પ્રશ્નો ગૌતમ દ્વારા પૂછવામાં આવે छ प्रश्न-(धायइसंडेणं भंते ! ) महन्त ! घाती (दीवे) ali ( सूरिया ) मे सूर्या (उदीचिपाईणमुग्गच्छ ) त्या शानभा उध्य पाभीने શું અગ્નિકોણમાં અસ્ત પામે છે? આ પ્રકારના જે પશ્નો જબૂદ્વીપના વિષયમાં पूछामा माया छ, मे मां प्रश्नी मही पूछा . ( उदीचि पाईण) (એટલે ઉત્તર અને પૂર્વ વચ્ચેની દિશા અથવા ઈશાનોણ.)
त२-(जहेव ज बुद्दीवस्स वत्तव्यया भणिया, तहेव धायइसंडस्स वि भाणियव्या) હે ગૌતમ ! આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં જંબુદ્વીપ સંબંધી પ્રશ્નોના જેવા ઉત્તરો આગળ આપ્યા છે, એવા જ ઉત્તર અહીં આપવા જોઈએ. અને જબૂદ્વીપના પ્રકરણમાં જે અલાપ (પ્રનેત્તરો આપવામાં આવ્યા છે, એ સઘળા माता मही ५५ याती' विष नेमे ( नवर) ५२न्तु विशे.
श्री.भगवती सूत्र:४