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भगवती सूत्रे
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' अभव्याः तदुभयनिषेवाच तथैव, 'संज्ञिनः ' ' असंज्ञिनः ' ' नो सज्ञि - नो असंज्ञिनश्च तथैव, ' ' सलेयाः कृष्णादिपड्लेश्याः, ' अश्याश्च तथैव, ' दृष्टि: ' सम्यग्दृष्टि, मिध्यादृष्टिः, मिश्रदृष्टिश्च तथैव, 'संयताः ' असंयताः, संयतासंयताः, नोसंयत-नो असंयत-नो संयतासंयताश्च तथैव कपायिणः ' तथेत्र, कोध - मान-माया-लोभकषायिणः, अकपायिणश्च तथैव ' ज्ञानिनः ' मति
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( सपएसा ) इस प्रकरणनें काल की अपेक्षासे जीव सप्रदेश भी हैं और अप्रदेश भी हैं यह बात एकत्व और बहुत्य दण्डकों द्वारा प्रतिपादित की गई है। (आहारग) इस प्रकरणमें आहारक नीव और अनाहारक जीव सप्रदेश भी हैं और अप्रदेश भी हैं यह बात एकत्व बहुत्व दण्डकों द्वारा प्रतिपादित की गई है। भव्य जीव, अभव्य जीव, तथा नो भव्य नो अभव्यजीव प्रकरण में भव्य जीव, अभव्य जीव तथा नो भव्य नो अभव्य जीव भी इसी तरह से हैं यह बात प्रतिपादित की गई है, संज्ञी असंज्ञी तथा नो संज्ञी नो असंज्ञी प्रकरण में संज्ञी जीव असंज्ञी जीव और नो संज्ञी नो असंज्ञी जीव भी इसी तरह से हैं यह बात प्रतिपादित की गई कृष्णादि छह श्यावाले जीव और लेश्याओं से रहित हुए जीव भी इसी तरह से हैं, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्र दृष्टिवाले जीव भी इसी तरह से हैं, संयत जीव, असंयत जीव, अरमां अजनी अपेक्षा
संयतासंयत जीव
हे - ( सएसा )
सप्रदेश यछे भने
પ્રદેશ પણ છે એ વાતનું એકત્વ અને મહુત્વ દડકા દ્વારા પ્રતિપાદન કરવામાં आयु छे. ( आहारग) मा अम्मां मडार भने अनाहार व સપ્રદેશ પણ છે અને અપ્રદેશ પણ છે એ વાતનું એકત્વ અને મહુ દંડકા द्वारा प्रतिपाहन ईरवामां माव्यु छे. ( भविय) या प्रम्रशुभां लव्य અભવ્ય જીવ, ને ભવ્ય જીવ અને ને અભય જીવે પણ એવાં જ છે એવું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યુ છે.
( सन्नि) मा शुभां संज्ञी, असज्ञी, ना संज्ञी मने न स ज्ञी જીવા પણ એવાં જ છે, એ વાતનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યુ છે.
(लेखा) कृष्णाहि छ बेश्यावाजा भयो भने बेश्यासाथी रहित પણ એવાં જ છે, એવુ આ પ્રકરણમાં પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યુ છે. અને
( दिट्ठी) या अशुभ सभ्यग्रदृष्टि, मिथ्यादृष्टि भने मिश्र दृष्टिवाणा જીવા પણ એવાં જ છે, એ વાતનું પ્રતિપાદન કરાયું છે.
(संजय) मा अशुभां संयंत, असंयत, संयतासंयत, ना संयत,
श्री भगवती सूत्र : ४