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________________ प्रमेयबद्रिका टीका श०५७०१ ४ लवणसमुद्रवक्तध्यतानिरूपणम् ८७ 'जया णं भंते !' यदा हलु भदन्त ! 'लवणे समुद्दे ' लवणे समुद्रे 'दाहिणड़े दिवसे भवइ ' दक्षिणार्धे दक्षिणभागे दिवसो भवति, 'तं चेव जाव ' तदेव यावद हथेवितं सर्वमेव यावरकरणात संग्राह्यम् , तथा च तदा लक्षणसमुद्रे उत्तरार्धेऽपि दिवसो भवति, यदा च उत्तरार्धे दिवसो भवति ' इत्यन्तं बोध्यम् , तदनन्तरमाह -'तया ' तदा लु 'लणसमुद्दे' लणसमुद्र 'पुरथिमपच्चस्थिमेणं' पौरस्त्यपश्चिम रूलु राई भवई' गर्भिवति 'एएणं' एतेन उक्तस्वरूपेण दिग्दर्शनात्मकेन 'अभिलावेणं' अभिलापेन 'नेयव्,' ज्ञातव्यम्। जम्बूद्वीपप्रकरणवत् सवे स्वयमूहनीयम्। ____ अथ गौतमो रक्षणसमुद्रऽवसर्पियादिविषयकं प्रश्नं करोति 'जया गं भंते !' कोई विशेषता नहीं है। इसी बात को शास्त्रकार ने ( जया णं भंते लवणसमुद्दे ) इत्यादि पाठ द्वारा स्पष्ट किया है गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! जब लवणसमुद्र में (दाहिणडे) दक्षिणदिग्भाग में ( दिवसे) दिवस होता है, (तं चेव जाव) के अनुसार उस समय लवणसमुद्र में (उत्तरड़े वि दिवसे) उत्तरदिग्भाग में भी दिवस (भवइ) होता है और जब उत्तरार्ध में भी दिवस होता है (तया णं) तब ( लवणसमुद्दे ) लवणसमुद्र में (पुरथिमपच्चत्थिमेण राई भवइ) पूर्व पश्चिम दिग्भाग में रात्रि होती हैं, ( एएणं अभिलावेणं नेयन्वं ) ऐसा कथन इस दिग्दर्शनात्मक अभिलाप से जानना चाहिये । अर्थात् जंबूद्वीप के प्रकरण की तरह सब अपने आप ममझ लेना चाहिये । अब गौतम प्रभु से लवण म्मुद्र में अवसर्पिणी आदि काल होते हैं यो नहीं होते हैं ऐसा प्रश्न करते हैं- (जया णं भंते !) हे भदन्त ! जष કહેવાશે, એટલી જ આલાપકોમાં વિશેષતા રહેલી છે. એજ વાતને સ્પષ્ટ કરવા भाट सूत्र नीयन प्रश्नोत्त२३५ माता५४ भूयो छ-(जयाणं भंते लवणसमुद्दे) 3 महन्त ! न्यारे सव समुद्रमा ( दाहिणड्ढे ) दक्षिणमा “दिवसे" हिस थाय छ, (तचेव जाव) त्या | उत्तराधमा हिवस थायछे ? अने न्यारे उत्तराधमा ५ हिवस थाय छ, ( तयाण) त्यारे ( लवणसमुद्दे) सवणुसमुद्रमा (पुरस्थिम-पच्चस्थिमेणं राई भवइ ? ) पू मने पश्चिम लामा शु रात्रि थाय छ ? ( एए णं अभिलावेणं नेयव्व) मा ४२॥ प्रश्नोत्तरे द्वारा सपा સમુદ્રના વિષયમાં સમસ્ત વર્ણન જંબુદ્વીપના વર્ણન પ્રમાણે જ કરવું જોઈએ. હવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પ્રશ્ન કરે છે કે લવણ સમુદ્રમાં અવमसपिणी मने उत्सपि डाय छे , नहीं- (जयाणं भंते ! ) 3 मह. rd ! न्यारे ( लवणसमुद्दे) Aqणुसभुद्रना (दाहिणडढे ) दक्षिण Hnti (पढमा ओसप्पिणी पडीवज्जइ ) Aqeelam प्रथY मा डाय, छ, श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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