SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ३उ. १ देवराजशकेन्द्रवव्यतानिरूपणम् ८५ 9 भुञ्जानो 'विरह' विहरति ' एवं महिडीए' एवं यथोक्तप्रकारो महर्द्धिकः महासमृद्धिसम्पन वर्तते इति शेषः । ' जाव एवइयं च णं' यावत् एतावच एतावदधिम् 'पभू' प्रभुः समर्थः 'विउच्चित्तए' विकुर्वितुम् अर्थात् एतावत्पदेनापि न ज्ञायते यत् कियतीं कीदृशीश्च विकुवणी कर्तुं स समर्थ इत्याकांक्षाशान्तये आह- 'एवं जहेब चमरस्स' इत्यादि । एवं यथैव चमरस्य, विकुर्वितुं सामर्थ्यमिति 'ata' तत्समानमेव ' भाणियन्वं' भणितव्यम् शक्रस्यावि विकुर्वितुं सामर्थ्य ज्ञातव्यम् किन्तु 'नवरे' विशेषः पुनरेतावानेव यत् ' दो केवलकप्पे जंबूदी वे दीवे' द्वौ केवलकल्पौ सम्पूर्णो जम्बूद्वीपो द्वीपों वैक्रियसमुद्घातेन समवहत्य निष्पादित निजानेकरूपैः पूरयितुं समर्थ इति 'अवसेसं' अवशेषम् 'तंचेव' तञ्चैव परिशेषं सर्वे तदनुसारमेव विज्ञेयम् । उक्तप्रकारेण भगवान् महावीरः अग्निभूतिं प्रकार से महाऋद्धि संपन्न है । 'जाब एवइयं च णं पभू विउच्चित्तए' यावत् वह इतनी विकुर्वणा करनेके लिये समर्थ है यहां 'एवइयं ' इस पद से विकुर्वणा करनेकी कोई हद तो प्रकट की गई नहीं हैंअतः उसे स्पष्ट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं कि- 'एवं जहेव चमरस्स तहेव भाणियव्वं' चमरेन्द्र की विकुर्वणा करनेकी जैसी शक्ति है वैसे ही शक्ति शक्रेन्द्र की भी जानना चाहिये। किन्तु इसमें जो विशेषता है वह 'नवरं' इस पदसे सूचित करते हुए सूत्रकार कहते है कि- 'दो केवलकप्पे जंबूद्दीवे दीवे' शक्रेन्द्र वैक्रिय समुद्धात से समवहत होकर निष्पादित निज अनेक रूपोंसे दो जंबूद्वीपों को भरने की शक्ति रखता है । 'अवसेसं तं चेव' बाकीका और सब कथन यहां उसके अनुसार ही जानना चाहिये। इस उक्त प्रकार से भगवान महावीर अग्निभूतिसे शक्रकी शक्ति आदिको 66 "एवं महडीए जात्र एव इयं च णं पभू विउव्वित्तए" ते देवराज शडेन्द्र या પ્રકારની સમૃદ્ધિઆદિ વાળા છે. અને એટલી જ વિપુણા કરવાને સમર્થ છે. एवइयं ” પદથી વિધ્રુણાનું પ્રમાણ પ્રકટ થતું નથી, તેથી તેની વિકુવાનું પ્રમાણ नीथेना थहो द्वारा दृर्शाव्यु छे - " एवं जहेव चमरस्स तहेब भाणियां " ચમરેન્દ્ર જેટલી વિધ્રુવ ણા શક્તિથી યુક્ત છે એટલી વિષુવા શક્તિ શકેન્દ્ર પણ ધરાવે छे " णवरं " परंतु " दो केवलकप्पे जंबूद्दीवे दीवे " शकेन्द्र वैडिय समुहघातथी ઉત્પન્ન કરેલા દેવ દેવીએનાં રૂપા વડે એ જ બુદ્વીપોન ભરી દેવાને સમ છે, પણ अमरेन्द्र मे यूद्दीपने भरवाने समर्थ छे. " अवसेसं तं चैव " मनुं समस्त વર્ણન ચમરેન્દ્ર પ્રમાણે જ જાણવું શકેન્દ્રના સામર્થ્યની વાત તેની શક્તિ ખતાવવાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy