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भगवतीसूत्रे (नवमः) उद्देशः 'लेस्साहिय' दशमः लेश्याभिश्च सम्पद्यते, इति रीत्या 'दसउद्देसा' दश उद्देशाः सम्पद्यन्ते । वक्तव्यविषयं प्रस्तौति 'रायगिहे नयरे' राजगृहे नगरे' 'जाव-एवं वयासी' यावत्-एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण गौतमः 'वयासी' अवादीत-'ईसाणस्स णं भंते !' हे भदन्त ! ईशानस्य खल 'देविंदस्स देवरण्णो' देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'कइलोगपाला' कति लोकपालाः 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह 'गोयमा !' 'चत्तारि लोगपाला' चत्वारो लोकपालाः 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ताः, 'नेरइए' नवम उद्देशक नैरयिक संबंधी है-अर्थात् नौवे उद्देशक में नैरयिक संबंधी उक्तव्यता का प्रतिपादन किया गया है। तथा दशवां उ शक 'लेस्साहिं' लेश्याओं से संपादित हुआ है-अर्थात् दशवें उद्देशक में लेश्याओंका वर्णन किया गया है । इस तरह से इस चतुर्थ शतक में दश उद्देशक हैं। अब सूत्रकार वक्तव्य विषयको प्रस्तुत करते हैं-'रायगिहे नयरे जाव एवं बयासी' राजगृह नगर में यावत् इस प्रकार से गौतमने कहा - पूछा, कि-ईसाणस्स णं भंते !' हे भदन्त ! ईशानके जो कि 'देविंदस्स देवरणो' देवोंका इन्द्र और देवों का राजा है 'कई लोगपाला' कितने लोकपाल 'पण्णत्ता' कहे गये हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम! 'चत्तारि लोगपाला' चार लोकपाल 'पण्णत्ता' कहे गये हैं । 'तं जहा' बे इस प्रकार से है-'सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे' सोम, यम, ४यु छ. 'नेरइए' नवमे। श४ ना२४ीना विषयमा छ. ते उदेशमा नानी १३तव्यतानु प्रतिपादन ४२१ामा मान्यु छ. तथा इसमा शभा 'लेस्साहि' લેશ્યાઓના વિષયમાં વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. આ રીતે આ ચેથા શતકમાં દસ हेश। 2. वे सूत्र४।२ १४तव्यना विषयर्नु विवेयन ४२ - 'रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी' २४25 नामां महावीर स्वाभानुं समयस२५५ परिषद नीजीધર્મોપદેશ સાંભળીને પરિષદ પાછી ફરી. ત્યારબાદ મહાવીર પ્રભુને ગૌતમ સ્વામીએ या प्रमाणे प्रश्न ४- 'ईसाणस्स णं भंते ! Hard ! 'देविंदस्से देवरण्णो ' देवेन्द्र ३१२।८ थाना 'कइ लोगपाला पण्णता?' almal दा छ ? ते
नन। उत्तर भापता महावीर प्रभुमे यु- 'गोयमा!' 3 गौतम! 'चत्तारि लोगपाला' शानेन्द्रना या२ alsual 'पण्णत्ता' ह्या छे. 'तंजहा' भनी नाम मा प्रमाणे छ- 'सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे सोभ, यम, १२५ भने वैश्रम
श्री भगवती सूत्र : 3