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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३उ.७५.५ वैश्रमणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८४९ काइया णं देवाणं' तेषां वा वैश्रवणकायिकानां देवानामाप नाज्ञातानि इत्यर्थः । अथ वैश्रमणस्य पुत्रस्थानीय देवानाह-'सकस्स' शक्रस्य 'देविंदस्य' देवेन्द्रस्य 'देवरण्णो' देवराजस्य 'वेसमणस्स' वैश्रमणस्य 'महारणो' महाराजस्य इमे वक्ष्यमाणरूपा देवाः 'अहावञ्चाऽभिण्णाया' यथाऽपत्याऽभिज्ञाताः, पुत्र सहशत्वेनाभिमताः ‘होत्था' सन्ति, तानेवाह-तं जहा'-तद्यथा'पुण्णभद्दे' पूर्णभद्रः, 'मणिभद्दे' मणिभद्रः, 'सालिभद्दे' शालिभद्रः, 'सुमणभद्दे' ममनो भद्रः, 'चक्के' चक्र: 'रक्खे' रक्षकः, 'पुगणरक्खे' पूर्णरक्ष: 'सवाणे सद्वानः 'सन्चजसे' सर्व यशाः 'सबकामे' सर्वकामः, 'समिद्धे' समृद्धः 'अमोहे' अमोघः, 'असंगे' असङ्गः इति अथ वैश्रमणस्य स्थितिमाह-'सकस' वेसमणकाइयाणं देवाणं' वैश्रमण महाराज के जो वैश्रमणकायिकदेव हैं उनसे भी ये पूर्वोक रूप्यक आदि द्रव्य पूर्वोक्त स्थानों में पड़ी हुई होने पर अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, विस्मृत और अविज्ञात नहीं रहती हैं । अर्थात् ये उनके द्वारा भी ज्ञात, दृष्ट, श्रुत, स्मृत और विज्ञात ही रहती हैं । अब सूत्रकार वैश्रमण महाराज के पुत्रस्थानीय देवों को प्रकट करते हुए कहते हैं कि 'सकस्स देविंदस्स देवरण्णो देवेन्द्र देवराज शक्र के ये जो चतुर्थ लोकपाल 'वेसमणस्स महारणो' वैश्रमण महाराज हैं, इनको 'इमे देवा' ये देवकी जिनका नाम निर्देश अभी कहते है 'अहावचाऽभिण्णाया' पुत्ररूपसे अभिमत हैं 'तं जहा' उनके नाम ये हैं 'पुण्णभद्दे' पूर्णभद्र, 'मणिभद्दे मणिभद्र' 'सालिभद्दे' शालिभद्र, सुमणभद्दे' सुमनोभद्र, 'चक्के' चक्र, 'रक्खे' रक्षक, 'पुण्णरक्खे' पूर्णरक्ष, 'सन्वाणे' सद्वान् 'सव्वजसे' सर्वयश, 'सव्वकामे' सर्वकाम, 'समिद्धे' समृद्ध, 'अमोहे' अमोघ, 'असंगे' असंग वैश्रमण देवाणं' तमना श्रमाय व प तेनाथी भज्ञात मा हात नथी. श्रमણકાયિક દેવે દ્વારા પણ તે દ્રવ્યરાશિ જ્ઞાત, દષ્ટ, મુત, મૃત અને વિજ્ઞાત જ રહે છે. वे सूत्रा२ श्रम बना पुत्ररथानीय वार्नु नि३५५ ४२ छ- सक्कस्स देविंदस्स देवरणो' हेवेन्द्र, १२।५ शना 'समणस्स महारणो' यया पास भएन भडाना 'इमे देवा अहावच्चाऽभिण्णाया' पुत्रस्थानीय देव (तंजहा) नीय प्रमाणे - 'पुण्णभद्दे' ५ मा 'मणिभद्दे' भाला, 'सालिभद्दे' lank 'सुमणभद्दे सुमार, 'चक्के' , 'रक्खे' २६४, 'पुण्णरक्खे पूरक्ष, 'सवाणे' सवान, 'सबजसे' सर्व यश, 'सव्वकामे सम, 'समिद्धे समृद्ध 'अमोहे' अमाध, 'असंगे' भने म. वे श्रम सोनी स्थितिनु नि३५९ ४२पामा मा छे– 'देविंदस्स देवरण्णो सक्कस्स' हेवेन्द्र, ३१२।५ ५3ना ये(L શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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