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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३.उ.७सू.५ वैश्रमणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८३९ अमोघः, असङ्गः, शक्रस्य खल देवेन्द्रस्य देवराजस्य वैश्रमणस्य महाराजस्य द्वे पल्योपमे स्थितिः प्रज्ञप्ता, यथाऽपत्याऽभिज्ञातानां देवानाम् एकं पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, एवं महद्धिकः, यावत्-वैश्रमणो महाराजः, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू. ५॥ ॥ तृतीय शतकस्य सप्तमोद्देशकः समाप्तः ॥ ३-७॥ ___टीका-' वैश्रमणनामकचतुर्थलोकपालं वर्णयितुं प्रस्तौति-'कहिणं भंते !' इत्यादि । गौतमः पृच्छति- हे भदन्त ! कुत्र खलु कस्मिन् स्थाने किल 'सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'वेसमणस्म यश, सर्वकाम, समृद्ध, अमोघ और असंग। (सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो, वेसमणस्स महारण्णो दो पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता) देवेन्द्र देवराज शक्रके लोकपाल इस वैश्रमण महाराजको स्थिति दो पल्योपमकी कहो गई है । (अहावचाऽभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, एवमहड्ढीए जाव वेसमणे महाराया) तथा-अपत्यके जैसे माने गये देवोंकी स्थिति एक पल्योपमकी कही गई है। इस प्रकारकी महान ऋद्धिवाला यावत् यह वैश्रमण लोकपाल है। (सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति) हे भदन्त ! आपने जैसा कहा है वह ऐसा ही है. हे भदन्त ! वह ऐसा ही है-इस प्रकार कह कर यावत् वे अपने स्थान पर विराजमान हो गये ॥ टीकार्थ-इस सूत्रद्वारा सूत्रकार चौथे वैश्रमण लोकपालका वर्णन कर रहे हैं-गौतम प्रभुसे पूछते हैं कि 'भंते' हे भदन्त ! 'सक्कस्स (सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णा, वेसमणस्स महारण्णो, दो पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता) देवेन्द्र, हे१२।०४ ना पास वैश्रम महारानी स्थिति मे पक्ष्या५मनी ही छ. (अहावच्चाऽभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता) भने तमना पुत्रस्थानीय वानी स्थिति मे पक्ष्योपमनी ही छ. (एवमहड्डीए जाय वेसमणे महाराया) ते वैश्रमाय सोपा उपरोत भडासमृद्धि माथी युत छ. (सेवं भंते ! सेवं भंते ति) 3 महन्त! आपनी पात तदन સત્ય છે. આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું, તે યથાર્થ છે. આ પ્રકારનાં શબ્દ બોલીને ગૌતમ સ્વામી વંદણ નમસ્કાર કરીને તેમને સ્થાને બેસી ગયા. ટીકાર્ય–આ સૂત્રમાં સૂત્રકારે કેન્દ્રના ચોથા લેકપાલ વૈશ્રમણનું વર્ણન કર્યું छ. गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे - 'भंते !! 3 महन्त ! (सक्कस શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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