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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३उ.७ मू.४ वरुणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८२७ ल्पवर्षणानि, 'उदभेदा इवा' उदकभेदा इति वा, उदको दा गिरि तटादिभ्यो झरणात्मकजलोद्भवाः 'उदप्पीला इवा' उदकोत्पीला इति वा, तडागादि जलराशयः 'उच्चाहा इवा' अपवाहा इति वा, अपकर्ष युक्तानि अल्पानि उदकवहनानि, यद्वा-ऊर्ध्वगमनरूपेण जलस्य वहनम् 'पव्वाहा इवा' पवाहा इति वा, प्रकृष्टानि उदकवहनानि अविच्छन्न धाराप्रवाह इत्यर्थः ‘गामवाहा इवा' ग्रामवाहा इति वा प्रामाणामपि प्रवहणकारकाः जलप्रवाहाः पूरविशेषा इत्यर्थः 'जाव-संनिवेसवाहा इवा' यावत् सनिवेशवाहा इति वा, योवत्-सन्निवेशानामपि प्रवहणाकारका जलपुराः यावत्करणात्-'नगरवाहा इति चा, खेटवाहा इति वा, कटवाहा इति वा, द्रोणमुखवाहा इति चा, मडम्बवाहा इति वा, वृष्टिका होना, 'दुवुट्ठी इवा' दुर्भिक्ष-अकालकी कारणभूत-अल्प-थोडी सी वरसाद का होना, 'उदभेदाई वा' पर्वत प्रदेशो से झरना आदि के रूपमें पानीका निकलना, 'उदप्पीलाइ वा' उदकोत्पील-तडाग आदि में जलकी राशिका बना रहना, 'उव्वाहा इवा' थोडा२ पानीका बहना, अथवा. ऊपर होकर पानीका वहना, 'पन्याहाइ वा' अविच्छिन्न (निरन्तर) धारा से जलका बहना 'गामवाहाह वा' गांव के गांव बह जावें इस प्रकार से जलके पूर आना, 'जाव' यावत् 'सनिवेसवाहाइ वा' सनिवेश भी बह जावें ऐसे पूर का आना, यावत् ' पद से 'नगर वाहाइ वा नगर के नगर तक वह जावें ऐसे जलप्रवाह का
आना, 'खेडवाहाइ वा' खेट वह जावे ऐसे पूरका आना, 'कबटवाहा इ वा' कर्बटोको बहानेवाले पूरोंका आना, 'द्रोणमुखवाहाइ वा द्रोणमुखोंको बहानेवाले पूरों का आना, 'मडम्बवाहाइ वा' मडम्बों को बहानेवाले पूरोंका आना, ‘पट्टनवाहाइ वा' पट्टनको बहा देने वाले पूरों १२साह थो, 'दवटीहवा' हु७१ ५ भवो ५५ परसाह थवा, 'उदभेदाई वा' गण अशामाथी २९ ३५ पा qj, 'उदप्पीलाइ चा' पास ताप माहिमा पानी या रडवो, 'उवाहाइ वा' पानी था। प्रवाह वडयो अथवा ५२ थधन पा १३, पव्वाहाइ वा निरंतर धारा३२ पासीन। अपाड पडवी, 'गामवाहाइ वा' भने म त य मे पातुं ५२ सावj, 'जाव संनिवेसवाहाइ वा' सनिश यय-तना स्थानी त लयमे ५२ भाव. मी 'जाव' ५४थी 'नगरवाहाइ वा, खेड़वाहाइ वा, कबटवाहाइवा, द्रोणमुखवाहीइ वा, 'मडम्बबाहाइ वा, पट्टनवाहाइ वा, आसमवाहाइ वा, संवाहवाहाइवा' मा सूत्रा8 अडएर ४२।यो छे. तेनी भावार्थ नीचे प्रमाणे छ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩