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________________ ८२४ भगवतीमत्रे तम् ? कथितम ? भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'तस्स थे' तस्य खलु पूर्वोक्तस्य 'सोहम्मवडेंसयस्य विमाणस्स' सीधर्मावतंसकस्य विमानस्य 'पञ्चत्थिमेणं' पश्चिमेन पश्चिमदिग्भागे 'सोहम्मे कप्पे' सौधर्मे कल्पे 'असंखेजाई असंख्येयानि- 'जहासोमस्स' यथा सोमस्य ‘तहाविमाण-रायहाणीओ' तथा विमान-राजधान्यः 'भाणिअब्बा' भणितव्याः 'जाव-पासायवडे सया' यावतप्रासादावतंसकाः, तथा च यावत्करणात् सोमवत् सर्व वर्णनं बोध्यम् । 'नवरं नवरम् अयं विशेष:-'नामनाणत्तं' नामनानात्वम् तदभिन्न नामत्वं वर्तते इति बोध्यः, वरुणस्य आज्ञादि कारिणो देवान प्रदर्शयितुमाह-'सक्कस्स णं' इत्यादि । इसका उत्तर देते हुए गौतम से कहते है कि-'गोयमा' है गौतम ! 'तस्स' पूर्वोक्त 'सोहम्मवडे सयस्स विमाणस्स' सोधर्मावतंसकविमान के 'पचत्थिमेणं' पश्चिमदिशामें 'सौहम्मे कप्पे' सौधर्मकल्प में 'असंखेजाई' असंख्यात हजार योजन आगे जाकर पश्चिमदिशा में वरुण महाराजका स्वयंजल विमान है-ऐसा संबंध यहां लगा लेना चाहिये, यही बात 'जहा सोमस्स तहा विमाण-रायहाणीओ भाणियव्वा' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है तथा “इस विषय से सम्बन्ध रखने वाला कथन' सोम लोकपाल के कथित विमानकी तरहसे ही जानना चाहिये, राजधानी आदि का 'जाव पासायवडे सया' प्रासादावतंसकों तकका सब कथन भी सोमकी वर्णित राजधानी आदि की तरह से ही जानना चाहिये वह समझाया गया है 'नवरं' विशेषता सिर्फ 'नामं नाणतं' भिन्न नामको हि लेकर हैं अर्थात् इनका नाम वरुण है। उत्तर-'गोयमा !' गौतम ! 'तस्स सोहम्मवडेंसयस विमाणेस्स' भूत सौधमावत' विमाननी 'पच्चत्थिमेणं' पश्चिम दिशामा 'सोहम्मे कप्पे' सोधभ६५ असंखेज्जाई • अज्यात २ यो २ वाथी १२९५ महारानुं સ્વયંજવલ નામનું મહાવિમાન આવે છે, એ સંબંધ અહીં ગ્રહણ કરે. એ જ पात नीयना सूत्रपा ! ४३री -'जहा सोमस्स तहा विमाणरायहाणीओ भाणियव्या' वार्नु तात्पर्य के छ वरना विमानन तथा वरुनी धानानु समस्त अयन सोभना विमान भने सोमनी घानी प्रभारी सभा 'जाव पासायडेंसया' प्रसाहात। ५-तनु समस्त थन ५५ सोमनी राधानान प्रसाहात सी प्रमाणे समा. 'नवरं, ते अन्न पश्ये २ विशेषता छ त 'नामं नाणत्तं तनामनी अपेक्षा " -ते वनमा ल्यां सामर्नु नाम આવે છે ત્યાં આ વર્ણનમાં વરુણનું નામ મૂકવું. હવે વરુણની આજ્ઞામાં રહેનારા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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