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________________ भगवतीसूत्रे तम्भत्तिगा' सर्वेऽपि ते तद्भक्तिकाः यमस्य भक्तिकारिणः ‘तप्पक्खिया' तत्पाक्षिकाः यमपक्षानुयायिनः 'तब्भारिया' तद्भार्याः तद्भभरणपोषणयोग्याः 'सकस्स देविंदस्स देबरण्णो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'जमस्स' यमस्य 'महारण्णो' महाराजस्य 'आणाए' आज्ञायाम् 'जाव-चिट्ठति' यावत्-तिष्ठन्ति, यावत् करणात-'उपपात-वचन-निर्देशे' इति संग्राह्यम् । अथ जम्बू द्वीपे मन्दराचलस्य दक्षिणे भागे सर्वेऽपि वक्ष्यमाणा उत्पाता एतस्याध्यक्षत्वे एव भवन्ती त्याह-'जंबूदीवे दीवे' इत्यादि । जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदरस्स पव्वयस्स' मन्दरस्य पर्वतस्य 'दाहिणेणं' दक्षिणे दक्षिणदिग्भागे 'जाई इमाई' यानि इमानि अग्रे वक्ष्यमाणानि उत्पातादिकार्याणि 'समुप्पज्जति ' समुत्पद्यन्ते न तानि यमस्या जो देव हैं 'ते सव्वें' वे भी सब 'तम्भत्तिगा' उस लोकपाल यमकी भक्ति करनेवाले हैं ' तप्पक्खिया' उस यमके पक्षके अनुयायी हैं । 'तन्भारिया' और उसके द्वारा भरणपोषण करनेके योग्य होनेसे उसकी भार्या जैसे होते हैं । ये सब 'सकस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो आणाए जाव चिटुंति' देवेन्द्र देवराज शक्रके लोकपाल यम महाराजकी आज्ञामें यावत् सदा बने रहते हैं। यहां यावत्पदसे 'उपपात-वचन-निर्देश इनतीन पदों का ग्रहण हुआ है। अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि जंबूद्वीप के मंदर पर्वतकी दक्षिण दिशामें जो जितने से प्रकट किये जानेवाले उपद्रव होते हैं वे सब यमकी ही जानकारीमें होते हैं-जंबूद्दीवे दीवे जंबूद्वीप नामके द्वीपमें 'मंदरस्स पव्वयस्स' मंदर पर्वतकी 'दाहिणेणं' दक्षिणभागमें 'जाई इमाई' जो ये आगे कहे जानेवाले उत्पात आदि कार्य समु. प्पज्जति' उत्पन्न होते हैं वे यमसे अज्ञात नहीं हैं ऐसा यहां सम्बन्ध २ वो छ । ते सव्वे ते सवै वो पy : तब्भत्तिगा' यममा२।४ी माहित ४२ना२। छ, 'तप्पक्खिया' भने। ५६ ४२ना२। छे, 'तब्भारिया' मने तमना हारा १२९५ पोषाने पात्र वाणी, तेमनी मार्या समान छे. ते सघा हेवो. 'सकस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो आणाए जाव चिट्टति' हेवेन्द्र, तुवरा०४ શકના બીજા લેકપાલ યમ મહારાજની આઝા, સેવા, વચન અને નિર્દેશને અનુસરે છે. હવે સૂત્રકાર એ પ્રક્ટ કરે છે કે જંબુદ્વીપના મંદર પર્વની દક્ષિણ દિશામાં જે જે ઉપદ્રવ થાય છે, તે યમમહારાજથી અજ્ઞાત હતા નથી. તે ઉપદ્રવો नाये मता०या छ- 'जंबूद्दीवे दीवे' *दीप नामना दीपा 'मंदरस्स पव्वयस्य दाहिणेणं मह२ पतनी दक्षिणे, 'जाई इमाई समप्पज्जति' मा व्या પ્રમાણે જે ઉપદ્રવ આદિ થાય છે, તે યમથી અજ્ઞાત હોતા નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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