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________________ ७९४ भगवतीसूत्रे 'अस्सुआ' अस्मृताः मनोऽगोचराः, 'अविण्णाया' अविज्ञाताः अवधिज्ञानाद्यविषयीभूताः अपि न भवन्ति, 'अण्णाया' इत्यारभ्य 'अविण्णाया' इति पर्यन्ताः सर्वे सोमस्य अविदिता न भवन्ति किन्तु सर्वे तद्ज्ञानविषयीभूताः सन्ति । अथ न केवलं ते सोमस्यैवाविज्ञाताः अपितु सोमपरिवारभूतानामपि नाविज्ञाता इत्याह-'तेर्सि वा' तेषां वा 'सोमकाइयाणं देवाणं' सोमकायिकानां देवानां न तेऽविज्ञाताः इत्यर्थः, अथ सोमस्य अपत्यत्वेनाभिमतान् ग्रहान प्रतिपादयितुमाह-'सकस्स गं' शक्रस्य खलु 'देविंदस्स देवरण्णो' देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'सोमस्स महारणो' सोमस्य महाराजस्य इमे वक्ष्यमाणा 'अहावचा' अश्रुत भी नहीं होते है । 'अस्सुया' अस्मृत-मनके अगोचर भी नहीं होते हैं । 'अविण्णाया' सोम के अवधिज्ञान आदिके अविषय भूत भी नहीं होते है । हैं । तात्पर्य यह है कि 'अण्णाया' पदसे लगाकर 'अविण्णाया' पद पर्यन्त सब सोमलोकपालके द्वारा अविदित अज्ञात नहीं रहते हैं किन्तु उसके ज्ञानके विषयभूत ही वे सब रहते हैं । ये सब ग्रहोंपद्रवादिजन्यपरिणाम सोम को ही अविदित नहीं रहते है, किन्तु सोमके परिवारभूत जो देव है उन्हें भी ये सब ज्ञात ही रहते हैं-यही बात 'तेसिं वा सोमकाइया णं' इत्यादि सूत्रपदों द्वारा व्यक्त की गई है । अर्थात् सोमकायिक देवोंसे भी वे अविज्ञात नहीं हैं । अब मूत्रकार इस बातको प्रकट करते हैं कि सोमने जिन ग्रहोंको अपत्यादिरूपसे माना है वे ये हैं-'सकस्स णं देविंदस्स देवरणो' देवेन्द्र देवराज शक्रके 'सोमस्स महारणो' सोममहाराज के मश्रुत ५ खाता नथी, 'अस्सया' मभृत-भनथी सभगतय नही मेवा हाता नथी, 'अविण्णाया' सामना मधिज्ञान माहिना विषयभूत पडात नथी. वार्नु તાત્પર્ય એ છે કે એ સઘળા ઉત્પાતે સોમ લોકપાલને જ્ઞાત હોય છે–એથી તે અજાણ હિતા નથી. ઉપકત સઘળા ઉત્પાતો અને ઉત્પાત જન્ય પરિણામેથી સોમ લોકપાલ તે અજ્ઞાત હોતો નથી, પણ સીમના પરિવાર રૂપ જે દેવો છે તેઓ પણ તેમનાથી અજ્ઞાત રહેતા નથી એટલે કે સોમકાયિક દેવે પણ તેમનાથી અજ્ઞાત હોતા નથી એજ पात सूरे नीयन सूत्रहो द्वारा ट रीछ-तेसि वा सोमकाइया णं' त्याह. वे सोभना संतान३५२ वो भनाय छे ते नये मताभ्यां से-'सकस्स पं देविंदस्सो देवरणो' से, हे१२०४ Aना asia 'सोमस्स महारणो' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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