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भगवतीसूत्रे इंदधणू इ वा, उदगमच्छ-विहसिय-अमोहपाईणवाया इ वा; पईणवाया इवा; जाव-संवट्टयवाया इवा, गामदाहा इ वा, जावसंनिवेसदाहा इ वा, पाणक्खया, जणक्खया, धणक्खया, कुलक्खया, वसणब्भूआ, अणारिया जे यावण्णे तहप्पगारा एते सकस्स देविंदस्स, देवरणो, सोमस्स महारणो अन्नया, अदिट्टा, असुया, अस्सुया, अविण्णाया, तेर्सि वा सोमकाइयाणं देवाणं, सकस्स णं देविंदस्स, देवरणो, सोमस्स महारण्णो इमे अहाबच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा-इंगालए, वियालए, लोहियक्खे, सणिञ्चरे, चंदे, सूरे, सुक्के, बुहे, बहस्सई, राहू, सकस्स णं देविंदस्स, देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सतिभागं, पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, एवं महिड्ढिए, जाव - महाणुभागे सोमे महाराया२ ॥ सू० २ ॥
छाया-जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे यानि इमानि समुत्पधन्ते, तद्यथा-ग्रहदण्डा इति वा, ग्रहमुसलानि इति वा, ग्रहगर्जितानि इति वा,
'जंबूदीवे दीवे' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स) जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मंदर(मेरु)पर्वतकी (दाहिणेणं) दक्षिण दिशा तरफ (जाइं इमाई) जो ये (समुप्पज्जति) उत्पन्न होते हैं (तंजहा) जैसे (गहइंडाइ वा, गहमुसलाइ वा, गहगजियाइ वा, गहजुद्धाइ वा) ग्रहदण्ड, ग्रहमुसल, ग्रह'जंबूदीवे दीवे' त्याह
सूत्रा-(जंबूदीव दीवे मंदरस्स पब्वस्स ) ५ नामना auvi भ४२ पतनी (दाहिणेणं) दक्षिण हिशा त२३ (जाइं इमाइं समुप्पजति )
नी अत्यत्ति थाय छ (तं जहा) मेai नीय प्रमाणे ना आर्या छ-( गहदंडाइ ना, गहमुसलाइ वा, गहगज्जियाइ वा, गहजुद्धाइ वा) 3, भुसस, लत,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩