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________________ प्रमेदचन्द्रिकाटीका श.३उ.सू.१ शक्रस्य सोमादिलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ७७९ 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण परिधिना 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तम् 'पासायाणं' प्रासादानाम् 'चत्तारि' चतस्रः 'परिवाडीओ णेयवाओ' परिपाटयः श्रेणयः ज्ञातव्याः 'सेसा नत्थि' शेषा न सन्ति, सुधर्मादिकाः सभा इह न सन्ति, उत्पत्तिस्थानेषु एक तासां सद्भावात् 'सकस्स णं देविदस्स, देवरणो' शक्रस्य खलु देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'सोमस्स महारण्णो' सोमस्य महाराजस्य इमे वक्ष्यमाणा देवाः 'आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठति' आज्ञो-पपात-वचन-निर्देशे तिष्ठन्ति, तत्र आज्ञा-'कर्तव्यमेवेदम्' इत्यादेशरूपा, सेवा-उपपातः, अभियोगपूर्वक आदेशो वचनम्, प्रश्निते कार्ये नियतार्थमुत्तरम् निर्देशः, एतेषां द्वद्वः, तस्मिन्, आज्ञादिकारिणो देवानाह-'तं जहा'-तद्यथा-'सोमकाइया इ वा' सोमकायिका पीठबंधका आयाम और विष्कंभात्मक दीर्घता १६ सोलहजार योजनकी है । तथा परिधिका प्रमाण ५० पचासहजार पांचसो सत्तानवे योजनसे भी कुछ अधिक है । 'पासायाणं' प्रासादोंकी 'चत्तारि' चार 'परिवाडीओ' परिपाटियां-श्रेणियों जानना चाहिये । 'सेसा नत्थि' बाकी यहां सुधर्मा आदि सभाएँ नहीं हैं। क्योंकि इनका सद्भाव उत्पत्ति स्थानोंमें है। 'सकस्स णं देविंदस्स देवरण्णो देवेन्द्र देवराज शक्रके लोकपाल 'महारण्णो' महाराज 'सोमस्स सेामके 'इमे ये वक्ष्यमाण 'देवा' देव 'आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठति' आज्ञा' उपपात, वचन एवं निर्देशमें सदा तत्पर रहते हैं। यह करने योग्य ही है' ऐसे आदेशरूप वचनोंका नाम आज्ञा है। सेवा करने का नाम उपपान है अभियोग पूर्वक आदेश देनेका नाम वचन है। पूछे गये काममें नियत પીઠબંધની લંબાઈ અને પહોળાઈ સેળ હજાર જનપ્રમાણ છે, અને પરિઘ પચાસ ०१२ पांयसे। सत्ता [५०५८७] यानी सर मधि: छ. 'पासायाणं' प्रासाहानी 'चत्तारि परिवाडीओ' या२ परिपाटियो [२] समावी. 'सेसा नत्थी' सुधर्मा સભા આદિ બીજુ કંઈ પણ ત્યાં નથી, કારણકે તેને સદૂભાવ ઉત્પત્તિ સ્થાનમાં જ हाय छे. ___'सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णा' हेवेन्द्र, ११२।१८ Art alsपात, 'महारण्णो सोमस्स' मडारा सोभना 'इमे देवा' नीय प्रभागना है। आणा-उववायवयणणिद्दे से चिट्ठति' तेमनी माज्ञा भाने छ, सेवा ४२ छ, तमना त्या प्रमाणे તથા આદેશ પ્રમાણે ચાલે છે. “આ કરવા યોગ્ય જ છે,” એવા અદેશરૂપ વચનને આજ્ઞા કહે છે. ઉપપાત એટલે સેવા, અભિયોગપૂર્વકના આદેશને વચન કહે છે. પૂછેલા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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