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भगवतीसगे भंते ! हे भदन्त ! स अमायी अनगारः किं तहाभावे' किं तथाभावम 'जाणइ, पासई' जानाति, पश्यति ? अण्णहाभावं अन्यथाभावम 'जाणइ पासइ' जानाति, पश्यति ? भगवानाह-गोयमा ! 'तहाभावं' तथाभावम् 'जाणइ, पासई' जानाति, पश्यति, 'नो अण्णहाभावं नो अन्यथाभावम् 'जाणइ, पासई' जानाति पश्यति । गौतमस्तत्र हेतुं पृच्छति-'से केण?णं! तत् केनार्थेन ? हे भदन्त ! कथं स अनगारः ययार्थरूपेणैव पश्यति, नो अयथार्थरूपेण ? भगवानाह-'गायमा !' हे गौतम ! 'तस्स एवं भवई' तस्य खलु अमायिनोऽनगारस्य एवम् वक्ष्यमाणमकारम् यथार्थज्ञानं भवति यत-'नो खलु एस रायगिहे णेयरे' नो खलु 'एतत् राजगृह नगरम्, ‘णो खलु एस वाणारसी नयरी' अनगार 'किं तहाभाव जाणइ पामह, अन्नहाभावं जाणइ पासई' क्या तथाभावसे जानता देखता हैं कि अन्यथाभावसे जानता देखता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते है कि गायमा हे गौतम! वह अनगार 'तहाभावं जाणइपास' तथाभावसे जानता देखता है, 'नो अन्नहाभाव जाणइपासह अन्यथाभावसे जानता देखता नहीं है। 'से केणटेणं एवं बुच्चई' है भदन्त आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि वह अमायी सम्यग्दृष्टि अनगार तथाभावसे जानता देखता हैं, अन्यथाभावसे नहीं जानता देखता है। इस प्रश्नका समाधान करते हुए प्रभु गौतमसे कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'तस्स णं एवं भवई' उसकी अमायी अनगार की विचारधारो ऐसी रहती है कि"नो खलु एस रायगिहे नयरे, णो खलु एस वाणारसी नयरी' न तो यह राजगृह नगर है, और न यह वाणारसी नगरी है 'नो खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे' न यह एक विशाल जनपदसमूह
प्रश्न ... से भंते ! 3 8-1 ! शुत समायी, सभ्यष्टि मगार 'किं तहाभाव जाणइ पासइ, अन्नहाभाव जाणइ पासइ ?' तेने यथार्थ ३थे and દેખે છે, કે વિપરીતરૂપે જાણે દેખે છે?
उत्तर- तहाभावं जाणई, पासइ, नो अण्णहाभाव जाणइ पासइ' હે ગૌતમ ! તે અણગાર તેને યથાર્થરૂપે જાણે દખે છે, વિપરીતરૂપે જાણતો દેખાતો નથી.
प्रश्न-'से केणटेणं' त्यादि. 3 महन्त ! आ५ ॥ २0 मेधुं हो छ। તે અમાયી, સમ્યગ્દષ્ટિ, ભાવિતાત્મા અણગાર તેને યથાર્થરૂપે જાણે દેખે છે–અયથાર્થ રૂપે જાણતો દેખતો નથી?
St२-'गोयमा !' गौतम ! 'तस्स णं एवं भवई' तना मनमा । HERनी मविपरीत विया२धा२॥ यावे छे-'नो खलु एस रायगिहे नयरे, णो खलु एस वाणारसी नयरी, नो खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे' मा २४P8
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩