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________________ ६८० भगवतीसूत्रे नायमर्थः समर्थः नैवं भवितुमर्हति एतावता बाह्यपुद्गलग्रहणमन्तरा स्त्र्यादि रूपं विकुर्वितुं न समर्थः, गौतमः पुनः पृच्छति 'अणगारेणं भंते !' हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भारियप्पा' भावितात्मा 'बाहिरए पोग्गले ' बाह्यान् पुद्गलान् 'परियाहत्ता' पर्यादाय परिगृह्य 'एगं महं' एकं महत् 'इत्थीरुवं वा' स्त्रीरूपं चा 'जाच-संदमाणिय रूवं वा' यावत्-स्यन्दमानिकारूपं वा 'विउवित्तए' विकुक्तुिम् विकुर्वणया निष्पादयितुं 'पभू' प्रभुः समर्थः ! किम् । यावत्करणात-उपयुकं पुरुषादिरूपं संग्राह्यम् । भगवानाह-हंता, पभू' हे गौतम ! हन्त प्रभुः समर्थः ! गौतमः पुनः पृच्छति-'अणगारे णं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! अनगारः खलु ‘भावियप्पा' भावितात्मा · केवइयाई' कियन्ति 'णो इणढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् वैक्रियपुद्गलो को ग्रहण किये विना भावितात्मा अनगार ऐसा किसी तरह नहीं कर सकता है । गौतम पुनःप्रभु से पूछते हैं कि (भावियप्पा अणगारे ण भंते !') हे भदन्त भावितात्मा अनगार 'बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता' बाह्यपुद्गलों को ग्रहण करके 'एगं महं' एक विशाल 'इत्थीरूव वा जाव संदमाणियरूव वा विउवित्तए पभू' स्त्री रूपको अथवा यावत् स्यन्दमानिका के रूपको विकुर्वित करने के लिये समर्थ है क्या ? 'हंता पभू' इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं-हां गौतम भावितात्मा अनगार इस स्थिति में ऐसा करने के लिये समर्थ है। विक्रियाशक्ति से रूपों को निष्पादन करना इसका नाम विकुर्वणा है। यहां पर भी 'यावत्' शब्द के पाठ से उपयुक्तं पुरुषादिरूपोका ग्रहण हुआ है । पुनः गौतम प्रभु से पूछते हैं कि “भावियप्पा अणगारे ___उत्त२–'णो इणटे सम? । गौतम ! मेवं समवी शतु नथी. मेट વેકિય પુદ્ગલેને ગ્રહણ કર્યા વિના ભાવિતાત્મા અણગાર એવું કરી શક્તો નથી प्रश्न- भावियप्पा अणगारेणं भंते' हे सह-त! सावितात्मा म॥२, 'बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता' मा पुगतान अ५ ४ीने 'एगं महं' मे भऽ! 'इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउवित्तए पभू? सी ३५ने અથવા પુરુષાદિ અન્દમાનિક પર્યન્તના રૂપને વિકન્વિત કરવાને શું સમર્થ છે? ___उत्तर-हता पभू' ७, गौतम ! मावितात्मा मा मासाने अY કરીને એવી વિકુણા કરી શકે છે. विवा' वी मंटो यतिथी ३थान: निभाए ४२. अडी ५ 'जाव' (કાવત) પદથી ઉપરોકત પુરુષાદિ રૂપ ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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