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भगवती
तथा अस्थि स्थितमज्जाथ, अस्थिस्थित वस्तुविशेषः, 'बहली भवंति' बहलीभवन्ति सघना भवन्ति प्रणीतभोजनसामर्थ्यात् 'तथा पयणुए' प्रतनुकं प्रतलं 'मंस - सोणिए' मांसशोणितं भवति, 'जे वि य से' येऽपि च तस्य पानभोजनस्य 'अहा बायरा' यथावादराः यथोचित बादराः स्थूलमायाः' पोग्गला' पुद्गलाः आहारपुद्गला भवन्ति 'ते वि य से' तेऽपि च तस्य पान - भोजनस्य पुद्गलाः 'परिणमंति' वक्ष्यमाणरीत्या तत्तद्रूपेण परिणमन्ति 'तं जहा ' तद्यथा परिणमनप्रकारमाह - 'सोइंदियत्ताए' श्रोत्रेन्द्रियतया कर्णेन्द्रियरूपेण 'जाब - फासिंदियत्ताए' यावत् स्पर्शेन्द्रियतया यावत्-स्पर्शेन्द्रियरूपेण
मायी भावितात्मा अनगार जो गरिष्ट भोजनका आहार करता है उस से उसकी अस्थियां और अस्थियोंकी चर्बी बहुत दृढ एवं सघन बन जाती है । यह भोजन यदि उसे कदाचित् परिपक्क नहीं होता है तो वह ऐसी औषधि आदिका प्रयोग भी कर लेता है कि जिससे वह सब अच्छी तरह से उसको पच जाया करता है । 'पयणुए मंससोणिए' मांस और शोणित- खून इसके सघन नहीं हो पाते हैं. पतली अवस्थामें रहते हैं । तथा - 'से' उस गृहीत पान भोजन के 'जे विय अहा वायरा पोग्गला' जो भी यथा बादर आहार पुद्गल होते है 'ते विय से' वे भी उस मायी भावितात्मा अनगार के 'परिणमंति' भिन्नर रूपसे परिणत होते रहते हैं । उस प्रणीत पान भोजनके कितनेक पुद्गल 'सोदियत्ताए' उसकी श्रोत्रेन्द्रिय के रूपमें परिणत होते रहते है, इस से उसकी श्रोत्रेन्द्रिय वलिष्ट और अपने कार्य पूर्णतः क्षम बनी रहती है । कितने उस आहार के पुद्गल जाव फासिंदियत्ताए ' यावत्
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સઘન ખની જાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે માી ભાવિતાત્મા અણુગાર જે સરસ અને સ્નિગ્ધ આહાર લે છે, તેના દ્વારા તેના હાડકાં અને ચખી ઘણાં મજબૂત અને સઘન બની જાય છે. કદાચ તેને તે ભેાજન પચે નહી તેા તે એવી ઔષધને उपयोग ४रे छेडे तेना द्वारा ते लोभन सारी रीते पथी लय छे. 'पयणुए मंस से णिए' તેનું માંસ અને લોહી સઘન થતાં નથી પણ પાતળાં પડે છે. મે તેણે ગ્રહણ કરેલા लोना 'जे वय अहा वायस पोग्गला' ने ? यथाणाहर भाहार चुदगल होय
'ते वय से परिणमंति' ते आहार चुङ्गो पशु हे नूहे परिशुभता रहे छे. ते अलीत लोननना डेंटला युगलो 'सोइंदियत्ताए' तेनी श्रीद्रिय ३थे, 'जात्र
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩