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________________ ५७८ भगवती सूत्रे , 4 गुप्तस्य गुप्तस्य गुप्तेन्द्रियस्येति संग्राह्यम् आउत्तं गच्छमाणस्स 1 आयुक्तम् उपयोगपूर्वकं यथास्यात्तथा गच्छतः गमनं कुर्वतः 'आउतं चिट्टमाणस्स' आयुक्तं तिष्ठतः - सोपयोगं स्थितिं कुर्वाणस्य 'निसीयमाणस्स' निषीदतः सोपयोगम् उपविशतः 'तुयट्टमाणस्स ' त्वग्वर्तयमानस्य सोपयोगं पार्श्वपरिवर्त्तनं कुर्वतः आउत्तं' आयुक्तम् सोपयोगम् 'वस्थ - पडिग्गह- कंवल- पायपुच्छणं' वस्त्र-प्रतिग्रह कम्बल - पादप्रोव्छनं वस्त्रादिरजोहरणान्तम् 'गेण्डमाणस्स' गृह्णानस्य गृहतः ग्रहणं कुर्वतः ' णिक्खियमाणस्स ' निक्षिपमाणस्य सोपयोगं संस्थापयतः अनगारस्य जाव - चक्खुपह्मनिवायमवि' यावत् - चचःपक्ष्मनिपातमात्रमपि इति तथाचायमर्थः - आयुक्त गमनादि स्थूलक्रियाजालस्य तावत् का कथा यावत् जिसके वश में हैं और जो 'आउत्तं गच्छमाणस्स' उपयोगपूर्वक चलता है 'आउ चिमाणस्स' उपयोगपूर्वक खड़ा होता है, 'आउस निसीयमाणस्स' उपयोगपूर्वक बैठता है 'आउन्तं तुयमाणस्स' उपयोगपूर्वक करवट बदलता है, 'आउन्तं वत्थ पडिग्गह कंबल - पायपुच्छणं' उपयोगपूर्वक वस्त्र, पात्र, कंबल, पादप्रोञ्छन आदि वस्त्र से लेकर रजोहरणपर्यन्त धर्मोपकरणोंको 'गेण्हमाणस्स' ग्रहण करता है एवं 'णिक्विमाणस्स' रखता है 'जाव चक्खुपम्हनिवायमवि' यावत् वह चक्षुपक्ष्मनिपात मात्ररूपक्रिया को भी बडी सावधानी के साथ करता है भ्रमात्र भी यतना से हिलाता है, फिर भी वह सक्रिय माना गया हैं और उसके कर्मबंध कहा गया है । तात्पर्य यह है कि उपयोगपूर्वक की गई ये चलना आदि स्थूल क्रियाएँ तो उस अनगार की सावधानी के साथ होती ही हैं इनकी तो बात ही क्या है- परन्तु 6 यस्स' ने गुप्त ब्रह्मचारी छे, ने पोतानी इन्द्रियों पर संयम राखे छे, 'आउ गच्छमाणस्स' ? उपयोगपूर्व गमन २ छे, 'आउनं चिट्ठमाणस्स' ? उपयोग पूर्व'' उलो थाय छे, 'आउत निसीयमाणस्स' ने उपयोग पूर्व ( यतनापूर्व ४) मेसे छे. 'आउतं तुयमाणस्स' ने उपयोगपूर्व प ३२वे छे, ' आउत्तं वत्थपरिगह कंबल पाय पुच्छणं ' ने वस्त्र, पात्र, उणस, पाइप्रोञ्छन, रहरण माहि धर्मोपशाने यतना पूर्व': ' गेण्डमाणस्स ' उडावे छे तथा 'णिक्खिवमाणस्स , नाये भृठे छे, 'जाव चक्खुषम्हनिवायमवि' भने आना पसारा भारवा पर्यन्तनी ક્રિયા પણ જે તનાપૂર્વક કરે છે—આંખની પાંપણા પણ સાવધાનતાપૂર્વક હલાવે છે, તા પણ તેને સક્રિય માનવામાં આવેલ છે અને તેને કમ`બંધ બંધાય છે, એમ કહ્યું છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તે અણુગાર ઉપર્યુકત ક્રિયાએ ઘણી સાવધાનીપૂર્વક શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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