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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.२ स. ११ शक्रचारयोर्गतिनिरूपणम् ४८७ असुरराजस्य 'उडू अहे, तिरियं च' ऊर्ध्वम् , अधः तिर्यक् च 'गतिविसयस्स' गतिविषयस्य मध्ये 'कयरे' कतरः को गतिविषयः 'कयरेहितो' कतरेभ्यः केभ्यो गतिविषयेभ्यः 'आपे वा' अल्पो वा' बहुए वा' बहुर्चा 'तुल्ले वा' तुल्यो वा 'विसेसाहिए वा' विशेषाधिको वा ? भगवानाह 'गोयमा!' 'सव्वत्थोवं' सर्वस्तोक' सर्वतोन्यूनम् 'खेत्तं ' क्षेत्रम् 'चमरे असुरिंदे असुरराया' चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः उच्उप्पयइ' ऊर्ध्वम् उत्पतति एक्केणं समएणं' एकेन समयेन 'तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ' तिर्यसंख्येयान् भागान-प्रदेशान् गच्छति 'अहे संखेज्जे भागे गच्छई' अधःसंख्येयान् भागान गच्छति । वज्रविषये माह 'वज्जस्स' वज्रस्य जहसक्कस्स तहेव' यथा शक्रस्य तथैव असुररणो चमरस्स' असुरेन्द्र असुरराज चमर का जो 'उडूं अहे तिरियं च गइविसयस्स' उर्व, अधः एवं तिर्यग् गन्तव्य स्थानरूप क्षेत्र है उसके बीच में 'कयरे' कौन सा क्षेत्र 'कयरेहिंतो' कौन से क्षेत्रों की अपेक्षा 'अप्पे वा' अल्प है 'बहुए वा' कौनसे क्षेत्रोंकी अपेक्षा बहुत ह 'तुल्लेवा' कौनसे क्षेत्रोंकी अपेक्षा तुल्य है और कौन से क्षेत्रोंकी अपेक्षा 'विसेसाहिए वा' विशेषाधिक है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं 'गोयमा' इत्यादि, हे गौतम ! 'असुरिंदे असुरराया उट्टे सव्वत्थोवं खेत्तं एक्केणं समएणं उप्पयई' असुरेन्द्र असुरराज चमर उर्व में सब से कम क्षेत्रतक एक समय में जाता है। “तिरियं संखेज्जे भागे गच्छई' तथा तिरछे क्षेत्र में वह एक समय में संख्यातभागों प्रदेशोतक जाता है। 'अहे संखेज्जे भागे गच्छइ' और अधः भी संख्यात भागों-प्रदेशों तक जाता है। 'वज जहा सकस्स च गइविसयस्स 3 महन्त ! मसुरेन्द्र मसु२२।०४ यभरना अघी भने तिय गमनना क्षेत्रनी तुना ७२वामां आवे तो 'कयरे कयरेहिता अप्पे वा, बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा' यु क्षेत्र जोनाथी ६५ छ, ध्यु क्षेत्र नाथी मधि छ, કયું ક્ષેત્ર કોની બરાબર છે અને કયું ક્ષેત્ર કયા ક્ષેત્રથી વિશેષાધિક છે ? આ પ્રશ્નને माम भापतi महावीरप्रभु । छ, –'गोयमा!. गौतम ! 'अमरिंदे असरराया उङ्क सम्वत्थोवं खेत्तं एक्केणं समएणं उप्पयइ' मसुरेन्द्र मसु२२३०१ यभ२ मे समयमा माछामा माछ। क्षेत्र सुधा चमन ४२ छ. तिरियं संखेज्जे भागे गच्छड ते ४ समयमा सच्यात मा प्रभार क्षेत्रमा तिय गमन ४२ छ, 'अहे संखेज्जे भागे गच्छई' भने मधासभा पशु सभ्यात an प्रभार क्षेत्र सुधी गमन ४२ छे. 'वज्जं जहा सक्कस्स तहेव-नवरं विसेसाहियं कायव्यं' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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