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भगवतीसूत्रे वर्तते किन्तु ‘उड्ड गइविसए' ऊर्ध्व गतिविषयः ऊर्ध्वगमनसामर्थ्यम् 'अप्पे अप्पे चेव' अल्पःअल्पश्चैव अतिशयेनाल्पः अत्यल्पः 'मंदे मंदे चेव' मन्दः मन्दश्चव अतिमन्दः 'वेमाणिआणं' वैमानिकानां देवानान्तु 'उड गइविसए' ऊर्ध्व गतिविषयः ऊर्ध्वगतिस्वरूपम् उर्ध्वगमनशक्तिः 'सीग्घे सीग्वे चेव' शीघ्रः शीघ्रश्चैव अतिशीघ्रः तथा 'तुरिए तुरिए चेत्र' त्वरितः, त्वरितश्चैवास्ति अतिशयत्वरायुक्तः किन्तु 'अहे गइदिसए' अधोगति विषयः-अधोगतिन्वरूपम् 'अप्पे अप्पे चेव' अल्पः अल्पश्चेव अत्यल्पः तथा 'मंदे मंदेचेव' मन्दः मन्दश्चैवअतिमन्दो वर्तते, एतावता उपयुकरीत्या देवानां गतिस्वरूपे प्रतिपादिते सति शक्र-वज्रचमराणाम् तुल्यमाने ऊर्ध्वक्षेत्रादौ गन्तव्ये कालभेदं दर्शयति'जावडयं' इत्यादि । यावत्कं यत्परिमाणम् ‘खेत्तं ' क्षेत्रम् प्रदेशम् 'सक्के देविंदे' शक्रो देवेन्द्रः, 'देवराया देवराजः 'उडू उप्पयइ' ऊर्ध्वम् उत्पतति गच्छति ‘एक्केणं समयेणं' एकेन समयेन , अर्थात् यावता कालेन शक्रः गईचेव' वेगवान होता है और शीघ्रगतिवाला होता है तथा 'तुरिए तुरिय गईचेव'त्वरायुक्त और त्वरावाली गतिवाला होता है परन्तु'उगइविसए' ऊपर जाने का उनका स्वभाव-ऊपर जानेकी शक्ति-'अप्पे अप्पेचेव' अल्प अल्प है-अत्यन्तकम है 'मंदे मंदेचेव' मन्दमन्द है-अतिमन्द है तथा 'वेमाणियाणं वैमानिक देवोंका "उडूढं गइविसए' ऊपर जाने का जो स्वभाव है-ऊपरजाने की जो उनकी शक्ति है 'सीग्घे सीग्धे चेव' वह तो अति शीघ्रतावाला होता है ' तुरिए तुरिए चेव' और अत्यन्त त्वरासे युक्त होता है, तथा 'अहेगइविसए' नीचे जाने का स्वभाव 'अप्पे अप्पे चेव, मंदे मंदे चेव' उनका अत्यल्प होता है और अति मन्द होता है इस कारण 'जावइयं खेत्त सक्के देविंदे देवराया उड्ढ उप्पयइ' देवेन्द्र देवराज शक्र ऊंचे जितनी दूर तक डाय छ, 'तुरिए तुरियगईचेव' नाये गमन ४२वामा तमे वरित भने त्वरित गतिवाम डाय छ, परंतु 'उड़ गई विसए' प q मन ४२वानी तेभनी शति 'अप्पे अप्पे चेव' मत्य- २८५ मने • मैदे मंदे चेव ' सत्यत म य छ, 'वेमाणियाणं उड़ गई विसए' मानि वोनी ये गमन ४२वानी गति 'सीग्धे सीग्धेचेव' मातिशय | मने 'तुरिए तुरिए चेव' मतिशय त्वरित डाय छे, तथा 'अहे गइ विसए' तेभनी नीय गमन ४२वानी गति 'अप्पे अप्पे चेव, मंदे मंदे चेव' मत्यत १६५ मने मत्यत मह जाय छे. ते ४२0, 'जावइयं खेत्तं सक्के देविंदे देवराया उट्ट उप्पयइ एक्केणं समएणं' मे समयमा हेवेन्द्र हे१२।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩