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________________ ४६६ भगवतीसत्रे यत् शक्रो द्वाभ्याम् , तद्वत्रिभिः सर्वस्तोकं चमरस्य असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य, अधोलोककाण्डम् , उर्वलोककाण्डम् संख्येयगुणम् , एवं खलु गौतम ! शक्रेण देवेन्द्रेण देवराजेन नो चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः शक्यते हस्तेन ग्रहीतुम् ।।मु.१०॥ टीका-गौतमः देवानां पूर्वपक्षिप्तपुद्गलस्य पुनः प्रतिग्रहणसामर्थ्य वर्तते नवा ? इति पृच्छति-'भंते ! त्ति' इत्यादि । हे भदन्त ! इति शब्देन संबोध्य 'भगवं गोयमे' भगवान् गौतमः 'समणं भगवं' श्रमणं भगवन्तं महावीर 'वंदइ नमसइ' वन्दते, नमस्यति, वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा च ‘एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादीत्-' देवेणं भंते !' हे भगवन् ! में दो समय में और वज्र तीन समय में जाता है इस तरह (अहोलोगकंडए) अधोलोक काण्डक (असुरिंदस्स असुररणो चमरस्स सव्वत्थो वे) असुरेन्द्र असुरराज का सब से कम है और (उङ्कलोयकंडए) उर्ध्वलोक काण्डक उसकी अपेक्षा (संखेजगुणे) संख्यातगुणा है (एवं खलु गोयमा ! सकेणं देविदेणं देवरण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहत्थिगेण्हित्तए) इस तरह हे गौतम! देवेन्द्र देवराज अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमरको पकड़ने के लिये समर्थ नहीं हुआ। टीकार्थ-गौतम स्वामी प्रभु से यह पूछते हैं कि देवो में पूर्वप्रक्षिप्त पुद्गलको पुन:प्रतिग्रहण करनेकी शक्ति है या नहीं?- भंते त्ति' इत्यादि । “भंते! त्ति' हे भदन्त ! इस शब्द से संबोधन करके 'भगवं गोयमे' भगवान् गौतमने 'समणं भगवं' श्रमण भगवान 'महावीरं' महावीर को 'वंदई' वंदन किया 'नमंसह' नमस्कार किया, वंदना नमस्कार करके 'एवं' इस प्रकार से 'वयासी' कहा-प्रभु से aiगे छे. २५। रीते (अहोलोग कंडए) मधासभा गमन ४२वानुं भान (अमुरिंदस्स असुररण्णो चमरस्स सव्वत्थोवे) सुरेन्द्र मसु२२।०४ यमरनु साथी माछु छ (उ. लोयकंडए संखेज्जगुणे) ५ यमरनुं मननु अणमान मधोमो मन ना भान ४२ai vयात छ. (एवं खलु गोयमा ! सक्केणं देविंदेणं देव. रण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहित्थिं गेण्डित्तए) गौतम ! 0 દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક તેના હાથથી અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરને પકડી શકવાને સમર્થનથી. ટીકાથ-ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે કે પૂર્વ પ્રક્ષિપ્ત પુદ્ગલેને पाछi ) ४२वानी शत वोमा छ नथी ? भंते ति', महन्त ! मेj समाधन ४ीन 'भगवं गोयमें लगवान गौतम 'समणं भगवं महावीरं' श्रम भगवान महावीरने 'बंदइ' । ४६१, 'नमंसई' नमः॥२ ४ा. १४ नमार શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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