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________________ म. टी. श.३ उ.२ सू.१० देवानां पुद्गल प्रक्षेप प्रतिसंहरणादिनिरूपणम् ४६३ प्रभुः, तत्केनार्थेन भदन्त ! यावत्-ग्रहीतुम् ? गौतम ! पुद्गलो विक्षिप्तः सन् पूर्वमेव शीघ्रगतिर्भूत्वा ततः पश्चात् मन्दगतिर्भवति, देवो महर्द्धिकः पूर्वमपि च पश्चादपि शीघ्रः शीघ्रगतिश्चैव, त्वरितः त्वरितगतिश्चैव, तत् तेनार्थेन यावत्-प्रभुग्रहीतुम् , यदि खलु भदन्त ! देवो महर्द्धिकः, यावत्-अनुपर्यटय ग्रडीतुम् ? चमर को मारने के लिये अपना वज्र छोड़ा ओर फिर उसे विचार करने पर पकडने के लिये वह पीछे गया अतः गौतमने श्रमण भगवान् महावोर से ऐसा प्रश्न किया कि 'जिस पुद्गल को पहिले फेंकदिया गया है-प्रक्षिप्त कर दिया है तो क्या वह पुद्गल वह देव पीछे जाकर पकड सकता है ? ' ऐसा प्रश्न किया है ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं (हंता! पभू) हां, गौतम देव इस प्रकार से करने के लिये समर्थ है । (से केणष्टेणं भंते ! जाव गिण्हित्तए) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि पहिले फेंके गये पुद्गल को वे पुनः पीछे जाकर ले आ सकते हैं ? (गोयमा! पोग्गले णं विक्खित्ते समाणे पुत्वामेव सिग्घगई भवित्ता तओ पच्छा मंदगई भवइ) हे गौतम ! जब पुद्गल फेंके जाते हैं तब उनकी प्रारंभ में गति शीघ्र होती है और बाद में वे मंदगति वाले हो जाते हैं । (देवेणं महिडिए पुचि पिय पच्छा वि सीहे सीग्घगई चेव, तुरिये तुरियगई चेव से तेणटेणं जाव पभू गेण्हित्तए) तथा जो बडी ऋद्धिवाले देव होते हैं वे पहिले भी और पीछे भी शीघ्ररूप होते हैं, शीघ्रगतिवाले તેણે તેને પીછો પકડયે. તેથી ગૌતમ સ્વામીના મનમાં એવો પ્રશ્ન ઉદ્દભવે છે કે જે પુદગલને પહેલાં ફેંકી દેવામાં આવ્યું હોય તે પુલની પાછળ જઈને શું દેવ તેને પકડી લઈ श छ ? 'त्यारे भावी२ प्रभु वाम मापे छे-(हंता! पद्म) 3 गौतम ! हेव मे ४२वान समर्थ डाय छे. (से केणटेणं भंते ! जाव गिण्हित्तए) महन्त ! मा५ શા કારણે એવું કહે છે કે પહેલાં ફેંકવામાં આવેલ પુદ્ગલની પાછળ જઈને દેવ તેને ५४ी श छ? उत्त२-(गोयमा ! पोग्गलेणं विक्खित्ते समाणे पुवामेव सिग्धगई भवित्ता तओ पच्छा मंदगई भवइ) गौतम ! न्यारे पुराने ३४ामा मा छे त्यारे શરૂઆતમાં તેની ગતિ શીવ્ર હોય છે, પણ ત્યારબાદ તેની ગતિ મજા પડી જાય છે. (देवेगं महिडीए पुचि पिय पच्छा वि सीहे सीग्धगई चेव, तुरिये तुरियगई से तेणटेणं जाव पभू गेण्डित्तए) ५ मद्धि तो २३मातमा मने पा७nથી પણ શીઘ હોય છે, શીધ્રગતિવાળા હોય છે, ત્વરિત હોય છે અને ત્વરિતગતિવાળા હોય છે. તે કારણે ફેંકેલા પુદ્ગલની પાછળ જઈને તે દેવ તેને પકડી લઈ શકે છે. श्री. भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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