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________________ ४५४ भगवतीस्त्रे 'सक्के देविंदे देवराया' शक्रो देवेन्द्रः, देवराजः 'वज पडिसाहरित्ता' वज्र प्रति संहृत्य 'मम' मम ‘तिक्खुत्तो' त्रिकृत्वः वारत्रयम् 'आयाहिणपयाहिणं करेइ' आदक्षिणप्रदक्षिणं दक्षिणावर्तप्रदक्षिणं करोति 'वंदइ, नमसइ , वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा च एवम् वक्ष्यमाणपकारेण 'वयासी अवादीत् 'एवं खलु भंते !' एवं खलु भदन्त ! अहं 'तुभं नीसाए' त्वां निश्रया आश्रित्य तवाश्रयेण 'चमरेणं असुरिंदेणं' चमरेण असुरेन्द्रेण 'असुररण्णा' असुरराजेन 'सयमेव' स्वयमेव 'अच्चासाइए' अत्याशातितः अपमानितः 'तएणं' ततः अपमानानन्तरम् खलु 'मए' मया 'परिकुविएणं समाणेणं' परिकुपितेन अत्यन्त कोपाविष्टेन सता 'चमरस्स' चमरस्य 'अमुरिंदस्स' असुरेन्द्रस्य 'असुररणो' कंपित हो गये तात्पर्य यह है कि वज्रको पकड़ते समय जब उसने पकड़कर बड़े जोर से मुट्टि बंद की तो अंगुलियों के आपस में एकदम वेग से मिल जाने के कारण उसने वायुका संचार हुआ-सो उससे मेरे केशाग्र कंपित हो उठे 'तए णं' वज्रको पकड लेने के बाद से सक्के देविंदे देवराया' उस शक देवेन्द्र देवराजने 'वज्जं पडिसाहरित्ता' वज्र को संकुचित करके प्रतिसंहरण करके 'ममं मेरी 'तिक्खुत्तो' तीन बार 'आयाहिणपयाहिणं करेइ' आदक्षिण प्रदक्षिण पूर्वक 'वंदह नमंसह' वंदना की नमस्कार किया । वन्दना नमस्कार करके फिर 'एवं वयासी' उसने इस प्रकार कहा 'एवं खलु भंते ! अहं तुभं नीसाए' हे भदन्त ! मैं आपकी निश्रा लेकर 'सयमेव असुरिदेणं असुररण्णा चमरेणं' स्वयं ही असुरेन्द्र असुरराज चमर के द्वारा 'अच्चासाइए' अपमानित किया गया हूं। 'तए गंमए कुविएणं समाणेणं' अतःमुझे अत्यंत क्रोध आ गया और इस कारण मैंने 'असु. આંગળી અતિ વેગથી સંમિલિત થવાથી તેમાંથી છૂટેલા વાયુથી મહાવીર પ્રભુના शायी ४ी ४या. 'तएणं' ने ५४ी दीधा पछी, से सक्के देविदे देवराया' ते देवेन्द्र ३१२।०४ 'वज्जं पडिसाहरिता' q०७नुं प्रतिम २६ ४शन 'मम' भारी "तिक्खुत्तो' ५ पा२ 'आयाहिणपयाहिणं करेइ' माक्षि प्रदक्षिणा पूर्व 'वंदइ नमसइ' ! ४२री, नमः॥२ ४. वय नमः४।२४ीने तेथे भने ' एवं वयासी' मा प्रमाणे यु: 'एवं खलु भंते ! ' महन्त ! 'अहं तुभं नीसाए सयमेव असुरिंदेणं असुररण्णा चमरेणं' मायनो माश्रय ली। छ मेवा मसुरेन्द्र भसु२२।०० यम२ ६॥२॥ 'अच्चासाइए' भाई अपमान ४२।यु छ, 'तएणं मए कुविएणं समाणे' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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